Thursday, April 23, 2015

History of Mazar - shrine and Peer

shrine and Peer

मजार-दरगाह और पीरो का इतिहास
1. हजरत नाथडौली जो तुर्क के शहजादे थे, उन्होंने मदुरै और तिरूचिरापल्ली में धन के बल पर हजारो हिन्दू मुसलमान बनाए और आज इनकी मजार पर हजारो हिन्दू औरते भी जाती है? क्यों?
2. सयद इब्राहीम शहीद ने हुक्मरान के जोर पर हजारो हिन्दू औरतो को मुसलमानी बनाया और आज इनकी दरगाह पर हजारांे हिन्दू जाते हैं क्यों?
3. खलीफा बाबा फखरूद्दीन ने पेनूकोंडा के राजा को मुसलमान बनाया और बाद में सारी प्रजा, आज इनकी मजार पर हजारो हिन्दू भी जाते हैं क्यों?
4. मुइनुद्दीन चिश्ती ने दिल्ली से अजमेर जाते हुए 700 हिन्दु औरतो को मुसलमानी बनवाया तलवार के बल पर और हजारो हिन्दू इन्हें चादर चढाते हैं क्यों?

Saturday, April 18, 2015

BEST GET YOUR GIRLFRIEND BACK BOOK – WHAT TO LOOK FOR

When you've lost somebody who you truly think about it can be one of the hardest things you confront. Your regular slant will be to attempt to recover her. To locate a reasonable approach to spare your relationship simply locate the best recover your sweetheart book out there, read it and tail it. 

Not all relationship books are made equivalent. Like with most things a few books are superior to others. Utilizing a book as a guide is a smart thought yet verify you pick the right book. Picking the wrong book and taking after the wrong counsel will safeguard not just that you will never recover your better half yet that you will bring about yourself and your ex a great deal of futile torment. 

Here are a couple of things you ought to search for in a book about recovering your better half : 

1) Any book that shows you to lie or misdirect to recover your sweetheart ought to be dodged no matter what. Regardless of the fact that those strategies do work, which is impossible, you won't have the adoring, genuine relationship you truly need. No relationship that is based on falsehoods and trickery will ever last or be genuinely satisfying. 

2) You need a book that will lay out a particular simple to take after aide. This isn't the time for a considerable measure of philosophical instructing. This is the time for a particular and powerful, arrangement of activity. 

3) A great relationship book ought to help you reveal the reasons why your relationship fizzled in any case. It won't provide you any benefit to recover your sweetheart on the off chance that you simply rehash the same slip-ups that got you to this point in any case. 

4) Any relationship book ought to likewise cover what to do if the unfathomable happens: you just can't recover her. Nobody needs to hear that yet infrequently that is what happens. Infrequently the relationship is only too far gone and you will need instruments and procedures to help get you through the unpleasant times while you are recouping from the separation. 

A decent relationship book will furnish you with those devices in a straight forward and take after organization. 

Like the tune says : "Separating Is Hard To Do" yet now and then, with the right help you can spare your relationship. Issue yourself each shot at joy that you can, locate the best recover your sweetheart book, study it and ideally you won't need to be singing a miserable melody any more.

Monday, April 6, 2015

Why Are You Late In Your Marriage?


हिंदू परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं, उनमें विवाह भी एक ‘संस्कार’ है, जिसे हर व्यक्ति को संपन्न करना चाहिए। लेकिन इस संस्कार के निर्वाह में जो अक्सर समस्या आती है, वह है ‘सही साथी का नहीं मिलना’ और विवाह में विलंब होना। 

जन्मकुंडली से पता चल सकता है कि आखिर किन ग्रहों की स्थितियां इसमें अड़चनें पैदा कर रही हैं। कुछ खास उपायों से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

 जन्मकुंडली का सातवां घर जातक के विवाह और विवाह से जुड़ी बातों के लिए होता है। सप्तम भाव या सप्तमेश पर आया कष्ट विवाह में विलंब के लिए जिम्मेदार हो सकता है। आमतौर पर विलंब से विवाह के निम्न कारण हैं:

1. जन्मकुंडली में शुक्र (पति/पत्नी का ) का कमजोर होना।
2. कमजोर बृहस्पति (प्रतिगामी, नाराज अथवा रुज्ण)।
3. जातक का सातवां घर कमजोर हो (प्रतिगामी, नाराज अथवा रुज्ण )।
4. सातवें घर में किसी ग्रह का नहीं होना।
5. सातवें घर पर शनि और मंगल का संयुक्त प्रभाव।
6. शनि, मंगल और राहू जैसे अनिष्टकारी ग्रहों का सातवें घर में होना।
7. शनि जातक के सातवें घर में बैठा हो।
8. जब शनि का सातवें घर से कुछ संबंध होता है। (शनि को काम में विलंब के लिए जाना जाता है। )
9. नवमांश/ डी9 चार्ट में ग्रहों की कमजोर स्थिति।

अकेले शुक्र के कमजोर होने से विवाह में विलंब हो सकता है। जन्मकुंडली में शुक्र विवाह और जीवनसाथी का प्रमुख सूचक होता है। जन्मकुंडली में यदि शुक्र की स्थिति सही हो तो विवाह में हो रहे विलंब की स्थितियों में सुधार आ सकता है। सुखी दांपत्य जीवन के लिए भी शुक्र की भूमिका अहम है। शुक्र जीवन के भौतिक सुखों को प्रभावित करता है और वैवाहिक खुशी जीवन की सबसे बड़ी भौतिक खुशियों में है, जिसका व्यक्ति आनंद ले सकता है।

विवाह के समय निर्धारण में बृहस्पति की भी अहम भूमिका है। विवाह में विलंब वास्तव में एक तरह से विवाह के समय का गलत निर्धारण है। सही समय पर विवाह के लिए अत्यंत आवश्यक है कि बृहस्पति में अच्छे परिणाम देने की प्रबलता हो।

शनि एक ऐसा ग्रह है, जिससे एकाकीपन मिलता है। कामों में विलंब करने की इसकी भूमिका जग जाहिर है और खुद सातवें घर का स्वामी होने के कारण या सातवें घर से किसी तरह का संबंध होने से विवाह  में विलंब होता है। गौरतलब है कि सातवें घर/ और सातवें घर के स्वामी पर मंगल और शनि के संयुक्त प्रभाव से वैवाहिक जीवन में गहरी समस्याएं आती हैं। याद रखें, शादी करना एक बात है और उस शादी से खुशियां पाना अगल बात है। यह तथ्य सभी के लिए सही है, चाहे वह जन्मकुंडली आदमी की हो अथवा औरत की। इस स्थिति में सलाह है कि विवाह करने से पहले आप हमेशा किसी योजय ज्योतिषी से सलाह लें।

नवमांश चार्ट अथवा डी9 चार्ट विवाह  से संबंधित चार्ट है। लज्न चार्ट में ग्रहों की अच्छी स्थिति हो और नवमांश चार्ट में कमजोर स्थिति, तो यह तकलीफदेह स्थिति है। इसके विपरीत, ग्रहों की लज्न चार्ट में खराब स्थिति, पर नवमांश चार्ट में अच्छी स्थिति विवाह के लिए सहायक स्थिति है।

प्रवेश

विभिन्न घरों में ग्रहों का प्रवेश भी शादी के समय निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शुक्र का अपने घर (वृष और तुला राशि)में होना अथवा सातवें घर / सातवें घर के स्वामी की स्थिति में होना, सातवें घर के स्वामी की बुलंदी, आदि विवाह की स्थितियां बनाते हैं। उदाहरण के लिए हाल में बृहस्पति बुलंदियों को महसूस कर रहा है (कर्क राशि में), इसलिए कर्क लज्न, वृष लज्न और कन्या लज्न में जन्मे जातकों के लिए विवाह का अच्छा समय है क्योंकि बृहस्पति सातवें घर में सीधा स्थित है।

दशा

विवाह में महादशाओं की भी काफी अहम भूमिका है। इन दशाओं (महादशा का स्वामी, अंतरदशा का स्वामी या प्रत्यंतर दशा का स्वामी)में बृहस्पति की कोई भी भूमिका विवाह का योग बनाती है। सप्तमेश भी शादी का योग बनाता है। राहू को भी विवाह का प्रतिनिधि माना गया है, इसलिए उसका हस्तक्षेप भी शादी का योग बनाता है। अंतिम किंतु कम महत्वपूर्ण नहीं कि शुक्र चूंकि विवाह का मुख्य प्रतिनिधि है, यह भी शादी की संभावनाएं बनाता है।

1. देवी लक्ष्मी की पूजा करें और रोजाना ‘श्री सूक्तम’ का पाठ करें।
2. नियमित रूप से बड़ों का आशीर्वाद लें।
3. अपनी मां का आदर करें और उनका पूरा ध्यान रखें।
4. भाभी का आदर करें और उन्हें उपहार दें।
5. ‘दुर्गासप्तशती’ से  ‘अर्गलास्तोत्रम्’ का पाठ करें।
6. लक्ष्मीनारायण मंदिर में चूड़ियां और सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएं चढ़ाएं।
7. जिस ग्रह से आपको कष्ट मिल रहा है, उसका रत्न पहनें।

Wednesday, March 18, 2015

'अश्वत्थामा' मंदिर में पूजा करते हैं


यहां है असीरगढ़ का किला
असीरगढ़ का किला बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर पर उत्तर दिशा में सतपुडा पहाड के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। किले के ऊपरी भाग में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर चारों और खाइयों से घिरा हुआ था !

किंवदंती के अनुसार इन्हीं खाइयों में से किसी एक खाई में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ, सीधे इस मंदिर में निकलता है। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा मंदिर में इसी रास्ते से आते हैं।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के नजदीक है 'असीरगढ़ किला' और इस किले के अंदर स्थित है 'गुप्तेश्वर महादेव मंदिर'।कहते हैं यहां गुप्तरूप से हर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अश्वत्थामा आते हैं। वह यहां शिवजी की पूजा करते हैं। अश्वत्थामा का उल्लेख महाभारत में मिलता है।
यहां किसी ने भी अश्वत्थामा को पूजा करते नहीं देखा, लेकिन सुबह गुप्तेश्वर मंदिर में शिवलिंग के समक्ष गुलाब के फूल और कुमकुम के मिलता है। मंदिर के पुजारियों का मानना है कि भगवान भोलेनाथ को गुलाब और कुमकुम अश्वत्थामा ही चढ़ाते हैं।

Sunday, March 15, 2015

Shiva's Nandi



नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है – आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। ध्यान का मतलब मुख्य रूप से यही है कि वह इंसान अपना कोई काम नहीं कर रहा है। वह बस वहां मौजूद है। जब आप बस मौजूद होते हैं, तो आप अस्तित्व के विशाल आयाम के प्रति जागरूक हो जाते हैं जो हमेशा सक्रिय होता है। आप जागरूक हो जाते हैं कि आप उसका एक हिस्सा हैं। आप अब भी उसका एक हिस्सा हैं मगर यह जागरूकता – कि ‘मैं उसका एक हिस्सा हूं’ – ध्यान में मग्न होना है। नंदी उसी का प्रतीक है। वह बस बैठा रहकर हर किसी को याद दिलाता है, ‘तुम्हें मेरी तरह बैठना चाहिए।’ 

Shiva's Third Eye.


शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा।

योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस तरीके से देख रहे हैं, जिस तरह उसका अनुभव कर रहे हैं, वह सच नहीं है!


इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो ज्यादा गहराई में देख सके। तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। हाल में ही एक वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है, जिसमें बताया गया है कि इंसानी आंख किस सीमा तक भौतिक अस्तित्व को देख सकती है। उनका कहना है कि इंसानी आंख भौतिक अस्तित्व का सिर्फ 0.00001 फीसदी देख सकते  है। इसलिए अगर आप दो भौतिक आंखों से देखते हैं, तो आप वही देख सकते हैं, जो सामने होता है। अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। हमारे देश और हमारी परंपरा में, ज्ञान का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातचीत सुनना या यहां-वहां से जानकारी इकट्ठा करना नहीं है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है। किसी कारण से महाशिवरात्रि के दिन प्रकृति उस संभावना को हमारे काफी करीब ले आती है। ऐसा करना हर दिन संभव है। इस खास दिन का इंतजार करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, मगर इस दिन प्रकृति उसे आपके लिए ज्यादा उपलब्ध बना देती है।

Saturday, March 14, 2015

Who Received the first instruction of Yoga?

योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की और हिमालय पर एक प्रचंड और भाव विभोर कर देने वाला नृत्य किया। वे कुछ देर परमानंद में पागलों की तरह नृत्य करते, फिर शांत होकर पूरी तरह से निश्चल (ध्यान्मगन) हो जाते। उनके इस अनोखे अनुभव के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। आखिरकार लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और वे इसे जानने को उत्सुक होकर धीरे-धीरे उनके पास पहुंचने लगे । लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि आदि योगी तो इन लोगों की मौजूदगी से पूरी तरह बेखबर थे। अपनी ही दुनिया में मस्त ! उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उनके इर्द गिर्द क्या हो रहा है! उन लोगो ने वहीं कुछ देर इंतजार किया और फिर थक हारकर वापस अपने घरों को लौट आए।

लेकिन उन लोगों में से सात लोग ऐसे थे, जो थोड़े हठी किस्म के थे। उन्होंने ठान लिया कि वे शिव से इस राज को जानकर ही रहेंगे। लेकिन शिव ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।

अंत में उन्होंने शिव से प्रार्थना की उन्हें इस रहस्य के बारे में बताएँ। शिव ने उनकी बात नहीं मानी और कहने लगे, ’मूर्ख हो तुम लोग! अगर तुम अपनी इस स्थिति में लाखों साल भी गुज़ार दोगे तो भी इस रहस्य को नहीं जान पाआगे। इसके लिए बहुत ज़्यादा तैयारी की आवश्यकता है। यह कोई मनोरंजन नहीं है।’ ये सात लोग भी कहां पीछे हटने वाले थे। शिव की बात को उन्होंने चुनौती की तरह लिया और तैयारी शुरू कर दी। दिन, सप्ताह, महीने, साल गुजरते गए और ये लोग तैयारियां करते रहे, लेकिन शिव थे कि उन्हें नजरअंदाज ही करते जा रहे थे। 84 साल की लंबी साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति के शरद संक्रांति में बदलने पर पहली पूर्णिमा का दिन आया, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण में चला गया। पूर्णिमा के इस दिन आदि योगी शिव ने इन सात तपस्वियों को देखा तो पाया कि साधना करते-करते वे इतने पक चुके हैं कि ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार थे। अब उन्हें और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।

शिव ने इन सातों को अगले 28 दिनों तक बेहद नजदीक से देखा और अगली पूर्णिमा पर इनका गुरु बनने का निर्णय लिया। इस तरह शिव ने स्वयं को आदि गुरु में रूपांतरित कर लिया। तभी से इस दिन को गुरु पूर्णिमा कहा जाने लगा। केदारनाथ से थोड़ा ऊपर जाने पर एक झील है, जिसे कांति सरोवर कहते हैं। इस झील के किनारे शिव दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गए और अपनी कृपा लोगों पर बरसानी शुरू कर दी। इस तरह योग का  प्रादुर्भाव हुआ या यों कहे की योग की पहली शिक्षा का शुभारंभ हुआ । इस प्रक्रिया के पूरे होने पर यही सात लोग  ब्रह्म ज्ञानी बन गए और हम आज उनको “सप्तऋषि” के नाम से जानते हैं। 


Friday, March 13, 2015

Mystery of Yoga.


‘योग’ शब्द दुनियाभर में अपनी पहचान तो बना चुका है। यह हर काल में बना रहा, सिर्फ इसलिए क्योंकि लंबे अर्से से इंसान की भलाई में जितना योगदान योग का रहा है, उतना किसी का नहीं।

आज लाखों लोग इसका अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? क्या कभी आप ने जानने की कोशिश की है कि ये कब आया कहाँ से आया किसने इसे शुरु किया? यह कहानी बहुत लंबी, बहुत पुरानी है आदियोगी यानी पहले योगी अर्थात योग के जनक के रूप में जाना जाता है। आप सोच रहे होंगे की क्या पहेली सुरु हो गयी लेकिन ये सच है की योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं, बल्कि योग के जनक के रूप में जाना जाता है। शिव ने ही योग का बीज मनुष्य के दिमाग में डाला।

शिव ने अपनी पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी। दूसरी शिक्षा जो योग की थी, उन्होंने केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले (सप्त ऋषियों ) सात शिष्यों को दी थी। यहीं दुनिया का पहला योग कार्यक्रम हुआ। शिव ने इन सातों ऋषियों को योग के अलग-अलग आयाम बताए और ये सभी आयाम योग के सात मूल स्वरूप हो गए। आज भी योग के ये सात विशिष्ट स्वरूप मौजूद हैं।

इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम इंसान तक पहुंचा सकें। इन सप्तऋषियों में से एक मध्य एशिया गए, दूसरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीकी भाग में गए, तीसरे ने दक्षिण अमेरिका और चौथे ने पूर्वी एशिया की राह पकड़ी। पांचवें ऋषि हिमालय के निचले इलाकों में उतर आए। छठे ऋषि वहीं आदि योगी के साथ रुक गए और सातवें ने दक्षिण दिशा में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। दक्षिणी प्रायद्वीप की यात्रा करने वाले यही ऋषि हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। जानते हैं उनका नाम क्या था? उनका नाम था – अगस्त्य मुनि।

अगर आप दक्षिण में कहीं भी जाएंगे तो आपको वहाँ के कई गाँवों में तमाम तरह आपको आज भी दक्षिण के कुछ गांवों की पौराणिक कथाएं सुनने को मिलेंगी। ’अगस्त्य मुनि’ ने इसी गुफा में ध्यान किया था’, अगस्त्य मुनि ने यहां एक मंदिर बनवाया’, ‘इस पेड़ को अगस्त्य मुनि ने ही लगवाया था’, ऐसी न जाने कितनी दंत कथाएं वहां प्रचलित हैं। अगर आप उनके द्वारा किए गए कामों को देखें और यह जानें कि पैदल चलकर उन्होंने कितनी दूरी तय की तो आपको इस बात का सहज ही अंदाजा हो जाएगा कि वह कितने बरस जिए होंगे। कहा जाता है कि इतना काम करने में उन्हें चार हजार पांच सों साल लगे थे।

अगस्त्य मुनि ने आध्यात्मिक प्रक्रिया को किसी शिक्षा या परंपरा के जैसे नहीं बनाया क्यूंकि वो जानते थे की लोग उन बातों इतनी जल्दी नहीं सिख पायेंगे और योग की सारी  शिक्षा बताने में पता नहीं कितने जन्म इन लोगों को लेने होंगे!, इसलिए उन्होंने एक सरल रास्ता निकाला और योग को जीवन जीने के तौर पर, व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बना दिया। उन्होंने सैकड़ों की तादाद में ऐसे योगी पैदा किए, जो अपने आप में ऊर्जा के भंडार थे। कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने कोई ऐसा शख्स नहीं छोड़ा जिस तक इस पवित्र योगिक ज्ञान और तकनीक को न पहुंचाया हो। इसकी झलक इस बात से मिलती है कि उस इलाके में आज भी तमाम ऐसे परिवार हैं, जो जाने अनजाने योग से जुड़ी चीजों का पालन कर रहे हैं। इन लोगों के रहन-सहन, जिस तरह वे बैठते हैं, खाते हैं, वे जो भी करते हैं, उसमें अगस्त्य के कामों की झलक दिखती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उन्होंने घर-घर में योग की प्रतिष्ठा की।

आज भी आप लोग हर रोज अपने घर के बड़े लोगों से सुनते होंगे की इतने बजे उठाना चाहिये सुबह जल्दी उठ कर साफ़ सफाई करो स्नान करने के बाद रसोईघर  में जाओ दो फिर  पहले सूरज को पानी  दो फिर तुलसी के पौधे में जल अर्पण करो ज्योत लगाओ आरती करो, मंदिर जाओ , इस दिन इस भगवान् की पूजा करो सुबह हर रोज ताजा गेहूं पीसो घेर में चूल्हे की पहली रोटी गौ माता की आदि आदि......इन सब बातों के पीछे क्या सीक्रेट (योग) था कोई नहीं जानता और जो जानता है और इसका पालन करता है वो सुखपूर्वक अपना दिन गुजारता है और मुक्ति पा कर  शिव के चरणों में जाता है!

Thursday, March 12, 2015

Yogmudra for HEART ATTACK, ANGINA PECTORIS, PAIN KILLER, SORBITATE, ANGINA PECTORIS, NERVOUSNESS, MIGRAINE.


                                                 मृत संजीवनी या अपान वायु मुद्रा 

विधि :-- तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की गद्दी में लगाएं (वायु मुद्रा) तथा मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं (अपान मुद्रा)| सबसे छोटी अंगुली सीधी रखें |


अभिप्राय :-- इस मुद्रा में दो मुद्राएं एक साथ लगाई जाती हैं – वायु मुद्रा और अपान मुद्रा | इसीलिये इसका यौगिक नाम है – अपान वायु मुद्रा | यह हृदयाघात (HEARTATTACK) में अत्यंत लाभकारी होने के कारण इसे मृतसंजीवनी मुद्रा की संज्ञा भी दी गई है | यदि अपान वायु मुद्रा ही कहें तो इस मुद्रा की विधि स्मरण करना आसान हो जाता है – वायु मुद्रा , अपान मुद्रा |

वायु मुद्रा पीड़ानाशक है – स्वाभाविक PAIN KILLER , शरीर में कहीं भी पीड़ा हो , गैस की समस्या हो , वायु मुद्रा उसे ठीक करती है | अपान मुद्रा पाचन शक्ति एवं हृदय को मजबूत करती है | ANGINA PECTORIS हृदय की पीड़ा के लिए तो यह शक्तिशाली मुद्रा है |

लाभ :-- (1) अपान वायु मुद्रा का हृदय पर विशेष प्रभाव पड़ता है | हृदयाघात (HEARTATTACK) रोकने एवं हृदयाघात हो जाने पर भी यह मुद्रा तत्काल लाभ पहुंचाती है | यह मुद्रा सोरबीटेट (SORBITATE) की गोली का कार्य करती है – दो तीन सैकेंड के भीतर ही इस मुद्रा का लाभ आरम्भ हो जाता है , रोगी को चमत्कारिक राहत मिलती है | बढ़े हुई वायु के कारण ही हृदय की रक्तवाहिनियां शुष्क होने लगती है – उनमें सिकुड़न पैदा होने लगती हैं | वायु मुद्रा से हृदय की नालिकाओं का सिकुड़न दूर होता है |

(2) हृदय शूल (ANGINA PECTORIS) दूर होता है |

(3) हृदय के सभी रोग दूर होते हैं |

(4) उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप दोनों ही ठीक होते हैं |

(5) दिल की धड़कन बढ़ जाए या धीमी हो जाए – दोनों ही स्थितियों में दिल की धड़कन सामान्य करती है |

(6) घबराहट (NERVOUSNESS) हो , स्नायु तन्त्र के सभी रोगों में लाभकारी |

(7) फेफड़ों को स्वस्थ बनाती है – अस्थमा में लाभकारी है |

(8) वातरोगों में तुरन्त लाभ – पेट की वायु , गैस , पेट दर्द गुदा रोग , एसिडिटी , गैस से हृदय की जलन सभी ठीक होते हैं |

(9) सिर दर्द , आधे सिर का दर्द (MIGRAINE) , सिर दर्द वास्तव में पेट की खराबी से ही होता है | सिर दर्द में इस मुद्रा का चमत्कारी लाभ होता है | अनिद्रा अथवा अधिक परिश्रम से होने वाले रोग भी ठीक होते हैं |

(10) घुटने के दर्द में आराम – सीढियां चढ़ने से पहले 5 से 7 मिनट अपान वायु मुद्रा लगाने से सीढियां चढ़ते हुए न सांस फूलेगा न ही घुटनों में दर्द होगा |

(11) हिचकी आनी बन्द हो जाती है | दांत दर्द में भी लाभदायक |

(12) आंखों का अकारण झपकना भी रुकता है | हमारी संस्कृति में स्त्रियों की दायीं आंख व पुरुषों की बायीं आंख का फड़कना अशुभ माना जाता है | अपानवायु मुद्रा से इसमें लाभ मिलता है |

(13) वात – पित्त – कफ तीनों दोषों को दूर करती है | रक्तसंचार प्रणाली , पाचन प्रणाली सभी को ठीक करती है |

(14) शरीर एवं मन के सभी नकारात्मक दबाव दूर करती है | इस मुद्रा के लगातार अभ्यास से सभी प्रकार के हृदय रोग दूर होते हैं परन्तु मुद्रा के साथ अपने भोजन , दिनचर्या , व्यायाम आदि पर ध्यान देना भी आवश्यक है | हृदय रोग में यह मुद्रा रामवाण है | एक प्रभावशाली इंजेक्शन से भी अधिक लाभदायक है |


सावधानी :-- * इस मुद्रा को दिन में दो बार 15 – 15 मिनट तक ही लगाएं |

• तर्जनी (Index finger) को अंगुष्ठ के मूल में लगाकर मध्यमा (Middle finger) तथा अनामिका (Ring finger) को अंगुष्ठ के अग्र भाग से मिलाकर यह मुद्रा बनती है | यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण और चमत्कारी मुद्रा है | जितनी जल्दी इस मुद्रा का शरीर पर प्रभाव होता है , शायद ही किसी दूसरी मुद्रा का होता होगा |

Monday, March 9, 2015

Meaning of Low Density lipoprotive, cholesterol, Very Low Density lipoprotive, BP.


Please Read Carefully

ये जानना बहुत जरुरी है ...
हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद। 
क्या कारण है |

हमने दाल खाई,
हमने सब्जी खाई, 
हमने रोटी खाई,
हमने दही खायी 
लस्सी पी ,
दूध,दही छाझ लस्सी फल आदि|,

ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया 

ये सब कुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है | पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय" उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"| उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है " epigastrium "| ये एक थेली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान हैं 


इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है | हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है| आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"। |ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी | यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|  ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है | अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया| और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है | अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी| आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|

अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,
एक क्रिया है जिसको हम कहते हे "Digestion"  और दूसरी है "fermentation"
फर्मेंटेशन का मतलब है सडना 
और डायजेशन का मतलब हे पचना|

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|

जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा| ये तभी होगा जब खाना पचेगा| यह सब हमें चाहिए| ये तो हुई खाना पचने की बात अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?

खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid ) |कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है, मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो| और एक दूसरा उदाहरण खाना जब सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे LDL (Low Density lipoprotive) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )| जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP ) हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ? तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है | आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ? तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |इससे भी ज्यादा खतरनाक एक  विष हे वो है VLDL (Very Low Density lipoprotive)| ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है। अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides| जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है | तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये विष हे और ऐसे विष 103 है | ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है , कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है | कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है | क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता| खाना पचने पर जो बनता है वो है मांस,मज्जा,रक्त ,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल,LDL-VLDL| 

और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !

पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है *जिसे आप heart attack कहते हैं ! तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है

* महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है | आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे। खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!

"भोजनान्ते विषं वारी"
(मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है )🔸

* इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!
अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???
तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !
अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??
बात ऐसी है ! जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं ! पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है ! उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है ! (बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है ) पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है ! तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं । तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !! जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले) उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने लगता है उनको  घंटे बाद पानी पीना चाहिए !

अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???
तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ????
बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है ! और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है ! तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है ! तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !
इसका जरूर पालन करे ! अधिक अधिक लोगो को बताएं



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Saturday, March 7, 2015

How To Protect Your Home from Negative Energy?


व्रिका विज बता रही हैं कि कैसे आप नकारात्मक ऊर्जा से अपने घर को बचा सकते हैं।
कई बार, आप किसी कमरे में जाते हैं और एकदम से चौंक जाते हैं। कुछ तो होता है और कई बार जिसे हम पहचान भी नहीं सकते, वह सही नहीं होता। एक प्रकार का असंतुलन होता है जो आपको असहज बना देता है। इस प्रकार के माहौल में, शायद आप कोई उच्चता महसूस करें, लेकिन फ़ौरन ही कमरे से बाहर जाना चाहते हैं, क्योंकि आप पूरी तरह निचुड़ा हुआ महसूस करते हैं। कुछ लोग जो हवा में सूक्ष्म ऊर्जा के प्रति भी बहुत संवेदनशील होते हैं, उस जगह रुकना पसंद नहीं करते, इस डर से कि शायद इससे उनके आभामंडल में ऊर्जा दूषित हो सकती है।

घर और अन्य स्थान अक्सर अपने पिछले रहने वालों की ऊर्जा ग्रहण कर लेते हैं; तो ध्यान दीजिये, क्योंकि ऊर्जा में नकारात्मक, सकारात्मक या कभी-कभी निष्प्रभाव तरंगें हो सकती हैं। यह अच्छा होगा कि अपनी और अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए घर में ऊर्जा की शुद्धि का नियमित अभ्यास शुरू किया जाए। ज्योत्सना सिंह, जो एक रेकी चिकित्सक हैं, अपने घर पर एक विशेष रूप से डिज़ाइन किए हुए और शक्तियुक्त दीपक में रोज़ाना कपूर जलाती हैं। वे कहती हैं, “मैं इसे बीचों-बीच जलाती हूँ”, “ऐसी जगह पर जहां से इसका सुगंधित धुआं, घर के हर कोने तक पहुँच सके। कभी-कभी, जिस प्याले में हम कपूर लाते हैं उसके बाहर कालिख या नकारात्मक ऊर्जा का भारी जमाव हो जाता है। हमारे गुरु कहते हैं कि यह नकारात्मक ऊर्जा है जो अब जल के दूर हो चुकी है।

अपनी उदासियों को पीछे छोड़िये

एक शुरुआत के लिए, ऐसी चीज़ों का त्याग करिए जिनकी आप को ज़रूरत न हो और यदि आपको नई चीज़ों कीज़रुरत हो तो उनके लिए जगह बनाइए। यह उन परिवर्तन की इच्छा और प्रकटीकरण हेतु प्रतीकात्मक हो सकता है, जो आप अपने जीवन में चाहते हैं। यह संभव है कि आपके चारों ओर ऐसी नकारात्मक ऊर्जाएँ फ़ैली हुई हो, जो इस तरह से आपके घर को यिन या नकारात्मक बना रही हो कि आपका मन भी प्रभावित हो रहा हो। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि नकारात्मक ऊर्जा इकट्ठी हो कर बढ़ जाती है, अपनी तरह के प्रभाव को और बढ़ाते हुए और यह आपके स्वास्थ्य, करियर और वित्त पर संकट ला सकती है, बिना किसी स्पष्ट कारण के भी। घर को अच्छी तरह से साफ़ करें और यह करते हुए, अपना ध्यान नकारात्मक ऊर्जा की शुद्धता पर केंद्रित रखने के लिए।

जब आप अवांछित नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर रहे हो, तो इच्छा-शक्ति बहुत ज़रूरी है। एक उद्देश्यपूर्ण आशय के बिना, कोई भी तकनीक सफल नहीं हो सकती।

प्रकाश और ध्वनि, दो बहुत ही उपयोगी यैंग उपचार हैं जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर देते हैं। खनकती विंड चाइम्स और रौशन फ़ानूस भी ऊर्जा को शुद्ध करते हैं। अन्य तरीक़े भी हैं, लेकिन कुछ लोगों के लिए, किसी विशेषज्ञ से परामर्श कर के सही तकनीक सीखना सबसे अच्छा होता है। सामने के दरवाज़े से, दक्षिणावर्त (क्लॉकवाइज़) दिशा में अन्दर आना, घंटी बजाते हुए प्रत्येक कमरे का चक्कर लगाना, भी प्रभावशाली होता है। इरादे के साथ ज़ोरदार, उद्देश्यपूर्ण ताली बजाना कमरे में जमा पड़ी गंदी ऊर्जा को छिन्न-भिन्न और बाहर कर सकता है। यह महीने में दो ​​या तीन बार किया जा सकता है।

ओम् के साथ हवा कीजिए साफ़
एक कमरे में 15 मिनट तक 'ओम्' या 'आमीन' जाप, बाहरी और अंदर, दोनों तरह से जादू का काम करता है। नमक से दीवारों को पोंछना और कमरे के कोनों में इसका छिड़काव, नकारात्मकताओं से छुटकारा पाने का एक प्रभावी तरीक़ा है। हर कमरे में नमक के पानी का एक कटोरा भी प्रभावी होता है क्योंकि नमक नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और उसे छिन्न-भिन्न कर देता है, लेकिन नमक को झाड़ना सुनिश्चित करें और इस नमक के पानी को रोज़ शौचालय के पॉट में फेंक दें, क्योंकि यह दूषित होता है। "मेरे प्राणिक उपचारक मुझे हमेशा एक नमक के पानी के कटोरे में नकारात्मक ऊर्जा को झाड़ के फेंक देने की सलाह देते हैं", रीना परेरा ने बताया, जो बुनियादी प्राणिक उपचार तकनीक में प्रशिक्षित हैं। वे कहती हैं, "हम अपने हाथों में स्पिरिट भी छिड़कते हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा हम पर हमला न करे।”

सामने के दरवाज़े से शुरू करते हुए दक्षिणावर्त (क्लॉकवाइज़) दिशा में, अपने घर की परिधि के आसपास चावल छिड़क कर देखिए। चावल ऊर्जा को बाहर की ओर और घर के भीतरी हिस्से से दूर खींच लेता है।
सुगंधित शांति

धूप-बत्ती या जड़ी बूटियों जैसे कि लैवेंडर से निकलता धुआं अच्छा होता है। नीलगिरी चिकित्सा के लिए, पुदीना समृद्धि के लिए, दोनों एक उपचार भरी खुशबू छोड़ते हैं। उनके जलने से जो प्राकृतिक सुगंधित सत्व निकलते हैं, वे तरंग भरी आवृत्तियों को पलट सकते हैं और किसी जगह पर मौजूद ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हुए शुद्ध कर सकते हैं

"आप अपने घर या कार्यस्थल की कल्पना बहुत छोटे रूप, कुल क्षेत्रफल लगभग 1 फुट, में अपने सामने कर सकते हैं। अपनी कल्पनाओं के दृश्य को जितना हो सके उतना स्पष्ट करें। फिर कमरों में विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा प्रवाहित करें, यह इरादा करते हुए कि ऊर्जा आपकी गदेलियों से फूट रही है, और आपका मुकुट चक्र से निकलते हुए नीचे की ओर पहुँच रही है। यह उस जगह को शुद्ध कर देता है और घर के सभी कमरों में किया जा सकता है", कहते हैं जसमीत सिंह, जो दक्षिण दिल्ली में एक प्राणिक उपचारक हैं।

अपने घर को सूरज की रोशनी के सैलाब से भरने दीजिए और नए प्राण या ची बनाने के लिए कम से कम एक
घंटे तक ताज़ी हवा आने के लिए खिड़कियां और दरवाज़े खोल दें। अपने घर में, अपना प्यारा, सुखदायक संगीत
बजाना, भी अच्छा ची बनाने के लिए एक और दमदार उपचार है।

Wednesday, March 4, 2015

Always Think Be Postive.


हमारे मस्तिष्क में अच्छा, प्यार और रचना करने की योग्यता है, विज्ञान बल्गेरियाई अकादमी के वैज्ञानिक हर्ष कब्राल्फ कहते हैं। वह मानते हैं कि मानव जाति अगले 10-15 वर्षों में एलियंस से सीधे संपर्क करने जा रही है, किसी रेडिया तरंगों के माध्यम से नहीं, बल्कि "विचारों की शक्ति से।" हमसे से कई के लिए, विचार कार्य कर रहे मस्तिष्क की दैनिक कृतियां, खुले नल से बहते पानी से ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि, सरल और संक्षेप दृष्टिकोण में लेते हुए दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डब्ल्यू हार्ट कहते हैं "मन के विश्लेषण की कलाकृतियां हैं"

हम वास्तविक ऊर्जा की सराहना में असफल रहते हैं जो मस्तिष्क की तरंगों को संगठित करती है। वास्तव में सोचने की शक्ति दर्शनशास्त्र के क्षेत्र तक सीमित नहीं है। एक आस्ट्रियन स्वास्थ्य देखभाल कंपनी ने विचार संचालित कृत्रिम बाँह का आविष्कार किया है जो पहनने वाले के मस्तिष्क के आवेगों पर कार्य करती है। जरागोजा विश्वविद्यालय, स्पेन के वैज्ञानिकों ने एक व्हीलचेयर का अनावरण किया है जिसे विचार शक्ति द्वारा चलाया जा सकता है - उपयोगकर्ता को केवल जहां वह जाना चाहता है, उसी ओर के भाग पर ध्यान लगाने की आवश्यकता है और स्कलकैप में इलैक्ट्रोड लक्ष्य पर कार्य करने के लिए उपयोगकर्ता के मस्तिष्क की गतिविधि का पता लगाता है।

विश्व के सबसे बड़े-बड़े खिलौना निर्माता एक आविष्कारक खेल का निर्माण पहले ही कर चुके हैं जहां मस्तिष्क-स्कैनिंग हैडसेट पहने खिलाड़ी विचारों की शक्ति का प्रयोग करते हुए एक अवरोधक मार्ग के माध्यम से गेंद का मार्गदर्शन कर सकते हैं। साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के संकेतों को पकड़ने के लिए और आदेशों में बदलने के लिए मस्तिष्क-कम्प्यूटर इंटरफेसिंग का प्रयोग किया है जो विभिन्न कार्यों के बारे में केवल सोच द्वारा उपकरणों और आभासी वास्तविक वातावरणों को नियंत्रित करने के लिए मानव को अनुमति देता है।

ये विकास भगवद्-गीता के दावे को मजबूत वैज्ञानिक आयाम देते हैं, "आप क्या सोचते हैं, अतः विचार कार्य है, किया जा रहा है और हो जाता है, जो सोचता है, वह बनता है।" यह सोचने की शक्ति थी कि कृष्ण ने अर्जुन में आह्वान किया जिससे उन्हें अपने दुख से उबरने की शक्ति मिली। यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन ने पुष्टि की कि मस्तिष्क तरंगों का सीधा प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है। उदाहरण के लिए उन्होंने पाया कि लोगों एक निश्चित आवृत्ति और स्थान की मस्तिष्कतरंगों के वर्धन द्वारा धीमी गति में चलने के लिए बनाया जा सकता है।

दर्शनशास्त्र के वास्तविक आंतरिक रहस्य में सी. अलेक्सजेंडर ने लिखते हैं, "जब सोच इच्छा के प्रयोग द्वारा मध्य बिंदु तक लाई जाती है, यह हजार गुना बल प्राप्त कर सामान्य परिस्थितियों में अधिग्रहण करती है। "मानसिक शक्ति के स्वामियों ने इन शक्तिशाली ऊर्जाओं के सदियों से अध्ययन के दौरान इस सत्य को सीखा है और वे इसे अपने अभ्यास व अनुदेश का पहला महान रहस्य मानते हैं।" यह हमारे स्वास्थ्य, जीवनशैली, व्यवसाय या संबंधों का बनाता है, हम क्या हैं, हम बनने के लिए चुनते हैं। स्वामी चिन्मयानंद के अनुसार, "गतिविधियां सोचने की शक्ति द्वारा सामथ्र्य पाती हैं जो उन्हें चलाती हैं। जैसे जैम्स ऐलन ने एज ए मैन थिनकैथ में लिखा है मानव मस्तिष्क चरित्र के आंतरिक वस्त्र और परिस्थिति के बाहरी वस्त्र दोनों का बुनकर है।"

हमारे जीवन के नकारात्मक पहलू के बारे में अधिक सोचने पर, हम हमारे क्रोध, निराशा या तनाव जैसी बहुत चीजों के परिवर्धन को समाप्त करते हैं। एफर्मेशन पावर में लुईस एल. हे लिखते हैं, "हमारे विचार हमारी भावनाओं, विश्वासों और अनुभवों को बनाते हैं। यदि हमारी सोच नकारात्मक है, हम नकारात्मकता के समुद्र में डूब सकते हैं, यदि यह सकारात्मक है, हम जीवन के सागर में तैर सकते हैं।" यह अज्ञान विश्वास में जीने वालों के नहीं है कि सकारात्मक सोच हमारे रास्ते की सभी बाधाओं को अपने आप हमें बचाएगी। इसके विपरीत, यह सकारात्मक सोच रखने वाले जीवन के बारे में है क्योंकि ऐसे मस्तिष्क बेहतर सोचता है।

सभी विपदाओं के लिए सकारात्मक सोच अकेले दुख हारण औषधि नहीं बन सकती, क्योंकि स्वय-सहायता करने में हमें विश्वास होगा, लेकिन यह निश्चित ही सकारात्मक भावनाओं को ठीक कर सकता है जो हमें स्पष्ट सोचने में मदद कर सकता है और खुशियां के अधिक पास ले जा सकता है। विचार हमें अच्छा करने, हानि, रचना, नष्ट, प्रेम और घृणा में समर्थ करते हैं। सत्ता पाने और शोषण के लिए हम शक्ति का प्रयोग करते हैं। यदि एलियंस के साथ संचार करने में यह हमारी मदद कर सकता, तो हमारे अपने स्वार्थ के संचार और कार्यों के गौरव के मार्गदर्शन के वर्णन के लिए इसका प्रयोग क्यों नहीं कर सकते।


Saturday, February 28, 2015

अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।

गंगा जल खराब क्यों नहीं होता?
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।
प्रस्तुति: फरहाना ताज

सर्दी के मौसम में कई बार छोटी बेटी को खांसी की शिकायत हुई और कई प्रकार के सिरप से ठीक ही नहीं हुई। इसी दौरान एक दिन घर ज्येष्ठ जी का आना हुआ और वे गोमुख से गंगाजल की एक कैन भरकर लाए। थोड़े पोंगे पंडित टाइप हैं, तो बोले जब डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तो तब गंगाजल पिलाना चाहिए।

मैंने बेटी से कहलवाया, ताउ जी को कहो कि गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है तो बोले, नहीं कई रोगों का भी इलाज है। बेटी को पता नहीं क्या पढाया वह जिद करने लगी कि गंगा जल ही पिउंगी, सो दिन में उसे तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिला दिया और तीन दिन में उसकी खांसी ठीक हो गई। यह हमारा अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।

इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।

दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं।

डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?

दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।

Wednesday, February 25, 2015

Are You Interested To Fulfill Your Dreams And Wish By Lord Shiva?


इसी तरह भगवान शिव की प्रसन्नता से मनोरथ पूरे करने के लिए शिव पूजा में कई तरह के अनाज चढ़ाने का महत्व बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इस उपाय को भी करना न चूकें। जानिए किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है...

शिव पूजा में गेहूं से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है। मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है। चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है।

तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं. जिसे साक्षात शिवस्वरूप माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक हर दिन भगवान शिव 24 घंटे में एक बार शिवलिंग में स्थित होते हैं इसलिए शिव आराधना करने से विशेष लाभ मिलते हैं...

शिव की पूजा के बाद 'ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं' इस मंत्र का 108 बार जप करें. शहद, गु़ड़, गन्ने का रस, लाल पुष्प चढ़ाएं.

मल्लिकार्जुन का ध्यान करते हुए 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें और कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प चढ़ाएं.

महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए 'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः' मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः' मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

'ओम त्र्यंबकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम, उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.' इस मंत्र का कम से कम 51 बार जप करें. इसके साथ ही ज्योतिर्लिंग पर शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प आदि चढाएं.

'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प
 शिव पंचाक्षरी मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का 108 बार जप करें और दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री चढ़ाएं.


How To Impress Lord Shiv?


भोलेनाथ को देवों के देव यानी महादेव भी कहा जाता है। कहते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी लिंग रूप में भी पूजा जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अनेक ऐसी चीजें पूजा में अर्पित की जाती हैं जो और किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती। जैसे आंक, बिल्वपत्र, भांग आदि। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुछ चीज़ें शिव पूजा में कभी उपयोग नहीं करनी चाहिए...

धार्मिक कार्यों में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते। लेकिन हल्दी, शिवजी के अलावा सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है।

शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला।

पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं को जो फूल बिल्कुल नहीं चढ़ाए जाते, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है।
एक धारना के अनुसार, शिव पूजा में तरह-तरह के फूलों को चढ़ाने से अलग-अलग तरह की इच्छाएं पूरी हो जाती है। जानिए किस कामना के लिए कैसा फूल शिव को चढ़ाएं....

वाहन सुख के लिए चमेली का फूल। दौलतमंद बनने के लिए कमल का फूल, शंखपुष्पी या बिल्वपत्र। विवाह में समस्या दूर करने के लिए बेला के फूल। इससे योग्य वर-वधू मिलते हैं।

पुत्र प्राप्ति के लिए धतुरे का लाल फूल वाला धतूरा शिव को चढ़ाएं। यह न मिलने पर सामान्य धतूरा ही चढ़ाएं। मानसिक तनाव दूर करने के लिए शिव को शेफालिका के फूल चढ़ाएं। जूही के फूल को अर्पित करने से अपार अन्न-धन की कमी नहीं होती।

अगस्त्य के फूल से शिव पूजा करने पर पद, सम्मान मिलता है। शिव पूजा में कनेर के फूलों के अर्पण से वस्त्र-आभूषण की इच्छा पूरी होती है। लंबी आयु के लिए दुर्वाओं से शिव पूजन करें। सुख-शांति और मोक्ष के लिए महादेव की तुलसी के पत्तों या सफेद कमल के फूलों से पूजा करें।

Sunday, February 22, 2015

When Lost Jambudweep and make BHARAT?


हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ."जम्बूदीप" था....?????
परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है और, इसका मतलब क्या होता है.??????
दरअसल हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के  नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है! लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात.पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है.।

आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया.जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर.अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था.।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ।
अथवा दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि जान बूझकर  इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी.।
परन्तु हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है समग्र द्वीप .
इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा. विभिन्न अवतारों में.सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था साथ ही हमारा वायु पुराण  इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में  स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था.। चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था.! नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था।

राजा का अर्थ उस समय. धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.। इस तरह .राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.।

ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!
हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...

Secrets of AUM


ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए 
ॐ के उच्चारण का मार्ग...
ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। 

1. ॐ और थायरायडः ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

2. ॐ और घबराहटः अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

3. ॐ और तनावः यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

4. ॐ और खून का प्रवाहः यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

5. ॐ और पाचनः ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

6. ॐ लाए स्फूर्तिः इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

7. ॐ और थकान: थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

8. ॐ और नींदः नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

9. ॐ और फेफड़े: कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

10. ॐ और रीढ़ की हड्डी: ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

11. ॐ दूर करे तनावः ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

Saturday, February 21, 2015

Secret Between Shiv Snake and Moon.


हर तस्वीर में, हर मूर्ति में, हर जगह शिव के सिर पर चंद्रमा और गले में सांप दिखाया जाता है। क्या है आखिर शिव का इनसे संबंध ? आइए जानते हैं -चंद्रमाशिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है।नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं।अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। अगर आप जीवन के नशे में नहीं डूबे हैं, तो सिर्फ सुबह का उठना, अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करना, खाना-पीना, रोजी-रोटी कमाना, आस-पास फैले दुश्मनों से खुद को बचाना और फिर हर रात सोने जाना, जैसी दैनिक क्रियाएं आपकी जिंदगी कष्टदायक बना सकती हैं।अभी ज्यादातर लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन की सरल प्रक्रिया उनके लिए नर्क बन गई है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे जीवन का नशा किए बिना उसे बस जीने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रमा को सोम कहा गया है, यानि नशे का स्रोत।अगर आप किसी चांदनी रात में किसी ऐसी जगह गए हों जहां बिजली की रोशनी नही हो, या आपने बस चंद्रमा की रोशनी की ओर ध्यान से देखा हो, तो धीरे-धीरे आपको सुरूर चढऩे लगता है। क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? हम चंद्रमा की रोशनी के बिना भी ऐसा कर सकते हैं मगर चांदनी से ऐसा बहुत आसानी से हो जाता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं। नशे का आनंद उठाने के लिए आपको सचेत होना ही चाहिए। जब आप शराब पीते हैं, तब भी आप सजग रहकर उस नशे का मजा लेने की कोशिश करते हैं। योगी ऐसे ही होते हैं पूरी तरह नशे में चूर मगर बिल्कुल सजग। योग का विज्ञान आपको हर समय अपने अंदर नशे में चूर रहने का आनंद देता है।योगी आनंद के खिलाफ नहीं होते। बस वे थोड़े से आनंद से या सिर्फ सुख से संतुष्ट नहीं होना चाहते। वे लालची होते हैं।सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों। प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है।पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं। जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे आनंद शब्द मिला। उसने उस रसायन को आनंदामाइड नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं।सर्पयोग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते है.
आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों। प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है।पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं। जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे 'आनंदÓ शब्द मिला। उसने उस रसायन को 'आनंदामाइडÓ नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं।सर्पयोग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं। इन 114 में से आम तौर पर शरीर के सात मूल चक्रों के बारे में बात की जाती है। इन सात मूल चक्रों में से, विशुद्धि चक्र आपके गले के गड्ढे में मौजूद होता है। यह खास चक्र सांप के साथ बहुत मजबूती से जुड़ा होता है। विशुद्धि जहर को रोकता है, और सांप में जहर होता है। ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। विशुद्धि शब्द का अर्थ है फिल्टर या छलनी। अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। वह उसे अपने शरीर में प्रवेश नहीं करने देते। जहर आपके अंदर सिर्फ भोजन के द्वारा ही नहीं जाता। वह कई तरीकों से आपके अंदर घुस सकता है एक गलत विचार, एक गलत भावना, एक गलत कल्पना, एक गलत ऊर्जा या एक गलत आवेग आपके जीवन में जहर घोल सकता है। अगर आपका विशुद्धि चक्र सक्रिय है, तो वह सभी कुछ छान देता है। वह आपको इन सभी असरों से बचाता है। दूसरे शब्दों में, विशुद्धि के बहुत सक्रिय हो जाने पर इंसान अपने अंदर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उसके आस-पास जो भी होता है, वह उस पर असर नहीं डालता। वह अपने अंदर स्थिर हो जाता है। वह बहुत शक्तिशाली प्राणी बन जाता है।