‘‘योग’ शब्द दुनियाभर में अपनी पहचान तो बना चुका है। यह हर
काल में बना रहा, सिर्फ
इसलिए क्योंकि लंबे अर्से से इंसान की भलाई में जितना योगदान योग का रहा है,
उतना किसी का नहीं।
आज लाखों लोग इसका अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? क्या कभी आप ने जानने की कोशिश की है कि ये कब आया कहाँ से आया किसने इसे
शुरु किया? यह कहानी बहुत लंबी, बहुत
पुरानी है, आदियोगी यानी पहले
योगी अर्थात योग के जनक के रूप में जाना जाता है। आप सोच रहे होंगे की क्या पहेली
सुरु हो गयी लेकिन ये सच है की योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं, बल्कि योग के जनक के रूप में जाना जाता है। शिव ने ही योग का बीज मनुष्य
के दिमाग में डाला।
शिव ने अपनी पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी।
दूसरी शिक्षा जो योग की थी, उन्होंने
केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले (सप्त ऋषियों ) सात शिष्यों को दी
थी। यहीं दुनिया का पहला योग कार्यक्रम हुआ। शिव ने इन सातों ऋषियों को योग के
अलग-अलग आयाम बताए और ये सभी आयाम योग के सात मूल स्वरूप हो गए। आज भी योग के ये
सात विशिष्ट स्वरूप मौजूद हैं।
इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग
हिस्सों में भेजा गया, ताकि
ये अपना ज्ञान आम इंसान तक पहुंचा सकें। इन सप्तऋषियों में से एक मध्य एशिया गए,
दूसरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीकी भाग में गए, तीसरे ने दक्षिण अमेरिका और चौथे ने पूर्वी एशिया की राह पकड़ी। पांचवें
ऋषि हिमालय के निचले इलाकों में उतर आए। छठे ऋषि वहीं आदि योगी के साथ रुक गए और
सातवें ने दक्षिण दिशा में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। दक्षिणी प्रायद्वीप की
यात्रा करने वाले यही ऋषि हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। जानते हैं उनका नाम क्या
था? उनका नाम था – अगस्त्य मुनि।
अगर आप दक्षिण में कहीं भी जाएंगे तो आपको वहाँ के कई
गाँवों में तमाम तरह आपको आज भी दक्षिण के कुछ गांवों की पौराणिक कथाएं सुनने को
मिलेंगी। ’अगस्त्य मुनि’ ने इसी गुफा में ध्यान किया था’, अगस्त्य मुनि ने यहां एक मंदिर बनवाया’,
‘इस पेड़ को अगस्त्य मुनि ने ही लगवाया था’, ऐसी
न जाने कितनी दंत कथाएं वहां प्रचलित हैं। अगर आप उनके द्वारा किए गए कामों को
देखें और यह जानें कि पैदल चलकर उन्होंने कितनी दूरी तय की तो आपको इस बात का सहज
ही अंदाजा हो जाएगा कि वह कितने बरस जिए होंगे। कहा जाता है कि इतना काम करने में
उन्हें चार हजार पांच सों साल लगे थे।
अगस्त्य मुनि ने आध्यात्मिक प्रक्रिया को किसी शिक्षा या
परंपरा के जैसे नहीं बनाया क्यूंकि वो जानते थे की लोग उन बातों इतनी जल्दी नहीं
सिख पायेंगे और योग की सारी शिक्षा बताने
में पता नहीं कितने जन्म इन लोगों को लेने होंगे!, इसलिए उन्होंने एक सरल रास्ता निकाला और योग को जीवन जीने के
तौर पर, व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बना दिया। उन्होंने
सैकड़ों की तादाद में ऐसे योगी पैदा किए, जो अपने आप में
ऊर्जा के भंडार थे। कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने कोई ऐसा शख्स नहीं छोड़ा
जिस तक इस पवित्र योगिक ज्ञान और तकनीक को न पहुंचाया हो। इसकी झलक इस बात से
मिलती है कि उस इलाके में आज भी तमाम ऐसे परिवार हैं, जो
जाने अनजाने योग से जुड़ी चीजों का पालन कर रहे हैं। इन लोगों के रहन-सहन, जिस तरह वे बैठते हैं, खाते हैं, वे जो भी करते हैं, उसमें अगस्त्य के कामों की झलक
दिखती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उन्होंने घर-घर में योग की प्रतिष्ठा की।
आज भी आप लोग हर रोज अपने घर के बड़े लोगों से सुनते होंगे
की इतने बजे उठाना चाहिये सुबह जल्दी उठ कर साफ़ सफाई करो स्नान करने के बाद रसोईघर में जाओ दो फिर पहले सूरज को पानी दो फिर तुलसी के पौधे में जल अर्पण करो ज्योत
लगाओ आरती करो, मंदिर जाओ , इस दिन इस भगवान् की पूजा करो सुबह हर रोज ताजा गेहूं
पीसो घेर में चूल्हे की पहली रोटी गौ माता की आदि आदि......इन सब बातों के पीछे
क्या सीक्रेट (योग) था कोई नहीं जानता और जो जानता है और इसका पालन करता है वो
सुखपूर्वक अपना दिन गुजारता है और मुक्ति पा कर शिव के चरणों में जाता है!
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