Saturday, February 28, 2015

अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।

गंगा जल खराब क्यों नहीं होता?
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।
प्रस्तुति: फरहाना ताज

सर्दी के मौसम में कई बार छोटी बेटी को खांसी की शिकायत हुई और कई प्रकार के सिरप से ठीक ही नहीं हुई। इसी दौरान एक दिन घर ज्येष्ठ जी का आना हुआ और वे गोमुख से गंगाजल की एक कैन भरकर लाए। थोड़े पोंगे पंडित टाइप हैं, तो बोले जब डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तो तब गंगाजल पिलाना चाहिए।

मैंने बेटी से कहलवाया, ताउ जी को कहो कि गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है तो बोले, नहीं कई रोगों का भी इलाज है। बेटी को पता नहीं क्या पढाया वह जिद करने लगी कि गंगा जल ही पिउंगी, सो दिन में उसे तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिला दिया और तीन दिन में उसकी खांसी ठीक हो गई। यह हमारा अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।

इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।

दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं।

डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?

दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।

Wednesday, February 25, 2015

Are You Interested To Fulfill Your Dreams And Wish By Lord Shiva?


इसी तरह भगवान शिव की प्रसन्नता से मनोरथ पूरे करने के लिए शिव पूजा में कई तरह के अनाज चढ़ाने का महत्व बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इस उपाय को भी करना न चूकें। जानिए किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है...

शिव पूजा में गेहूं से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है। मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है। चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है।

तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं. जिसे साक्षात शिवस्वरूप माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक हर दिन भगवान शिव 24 घंटे में एक बार शिवलिंग में स्थित होते हैं इसलिए शिव आराधना करने से विशेष लाभ मिलते हैं...

शिव की पूजा के बाद 'ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं' इस मंत्र का 108 बार जप करें. शहद, गु़ड़, गन्ने का रस, लाल पुष्प चढ़ाएं.

मल्लिकार्जुन का ध्यान करते हुए 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें और कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प चढ़ाएं.

महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए 'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः' मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः' मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं.

'ओम त्र्यंबकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम, उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.' इस मंत्र का कम से कम 51 बार जप करें. इसके साथ ही ज्योतिर्लिंग पर शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प आदि चढाएं.

'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प
 शिव पंचाक्षरी मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का 108 बार जप करें और दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री चढ़ाएं.


How To Impress Lord Shiv?


भोलेनाथ को देवों के देव यानी महादेव भी कहा जाता है। कहते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी लिंग रूप में भी पूजा जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अनेक ऐसी चीजें पूजा में अर्पित की जाती हैं जो और किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती। जैसे आंक, बिल्वपत्र, भांग आदि। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुछ चीज़ें शिव पूजा में कभी उपयोग नहीं करनी चाहिए...

धार्मिक कार्यों में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते। लेकिन हल्दी, शिवजी के अलावा सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है।

शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला।

पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं को जो फूल बिल्कुल नहीं चढ़ाए जाते, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है।
एक धारना के अनुसार, शिव पूजा में तरह-तरह के फूलों को चढ़ाने से अलग-अलग तरह की इच्छाएं पूरी हो जाती है। जानिए किस कामना के लिए कैसा फूल शिव को चढ़ाएं....

वाहन सुख के लिए चमेली का फूल। दौलतमंद बनने के लिए कमल का फूल, शंखपुष्पी या बिल्वपत्र। विवाह में समस्या दूर करने के लिए बेला के फूल। इससे योग्य वर-वधू मिलते हैं।

पुत्र प्राप्ति के लिए धतुरे का लाल फूल वाला धतूरा शिव को चढ़ाएं। यह न मिलने पर सामान्य धतूरा ही चढ़ाएं। मानसिक तनाव दूर करने के लिए शिव को शेफालिका के फूल चढ़ाएं। जूही के फूल को अर्पित करने से अपार अन्न-धन की कमी नहीं होती।

अगस्त्य के फूल से शिव पूजा करने पर पद, सम्मान मिलता है। शिव पूजा में कनेर के फूलों के अर्पण से वस्त्र-आभूषण की इच्छा पूरी होती है। लंबी आयु के लिए दुर्वाओं से शिव पूजन करें। सुख-शांति और मोक्ष के लिए महादेव की तुलसी के पत्तों या सफेद कमल के फूलों से पूजा करें।

Sunday, February 22, 2015

When Lost Jambudweep and make BHARAT?


हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ."जम्बूदीप" था....?????
परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है और, इसका मतलब क्या होता है.??????
दरअसल हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के  नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है! लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात.पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है.।

आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया.जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर.अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था.।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ।
अथवा दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि जान बूझकर  इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी.।
परन्तु हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है समग्र द्वीप .
इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा. विभिन्न अवतारों में.सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था साथ ही हमारा वायु पुराण  इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में  स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था.। चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था.! नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था।

राजा का अर्थ उस समय. धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.। इस तरह .राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.।

ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!
हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...

Secrets of AUM


ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए 
ॐ के उच्चारण का मार्ग...
ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। 

1. ॐ और थायरायडः ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

2. ॐ और घबराहटः अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

3. ॐ और तनावः यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

4. ॐ और खून का प्रवाहः यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

5. ॐ और पाचनः ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

6. ॐ लाए स्फूर्तिः इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

7. ॐ और थकान: थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

8. ॐ और नींदः नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

9. ॐ और फेफड़े: कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

10. ॐ और रीढ़ की हड्डी: ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

11. ॐ दूर करे तनावः ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

Saturday, February 21, 2015

Secret Between Shiv Snake and Moon.


हर तस्वीर में, हर मूर्ति में, हर जगह शिव के सिर पर चंद्रमा और गले में सांप दिखाया जाता है। क्या है आखिर शिव का इनसे संबंध ? आइए जानते हैं -चंद्रमाशिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है।नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं।अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। अगर आप जीवन के नशे में नहीं डूबे हैं, तो सिर्फ सुबह का उठना, अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करना, खाना-पीना, रोजी-रोटी कमाना, आस-पास फैले दुश्मनों से खुद को बचाना और फिर हर रात सोने जाना, जैसी दैनिक क्रियाएं आपकी जिंदगी कष्टदायक बना सकती हैं।अभी ज्यादातर लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन की सरल प्रक्रिया उनके लिए नर्क बन गई है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे जीवन का नशा किए बिना उसे बस जीने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रमा को सोम कहा गया है, यानि नशे का स्रोत।अगर आप किसी चांदनी रात में किसी ऐसी जगह गए हों जहां बिजली की रोशनी नही हो, या आपने बस चंद्रमा की रोशनी की ओर ध्यान से देखा हो, तो धीरे-धीरे आपको सुरूर चढऩे लगता है। क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? हम चंद्रमा की रोशनी के बिना भी ऐसा कर सकते हैं मगर चांदनी से ऐसा बहुत आसानी से हो जाता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं। नशे का आनंद उठाने के लिए आपको सचेत होना ही चाहिए। जब आप शराब पीते हैं, तब भी आप सजग रहकर उस नशे का मजा लेने की कोशिश करते हैं। योगी ऐसे ही होते हैं पूरी तरह नशे में चूर मगर बिल्कुल सजग। योग का विज्ञान आपको हर समय अपने अंदर नशे में चूर रहने का आनंद देता है।योगी आनंद के खिलाफ नहीं होते। बस वे थोड़े से आनंद से या सिर्फ सुख से संतुष्ट नहीं होना चाहते। वे लालची होते हैं।सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों। प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है।पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं। जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे आनंद शब्द मिला। उसने उस रसायन को आनंदामाइड नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं।सर्पयोग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते है.
आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों। प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है।पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं। जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे 'आनंदÓ शब्द मिला। उसने उस रसायन को 'आनंदामाइडÓ नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं।सर्पयोग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं। इन 114 में से आम तौर पर शरीर के सात मूल चक्रों के बारे में बात की जाती है। इन सात मूल चक्रों में से, विशुद्धि चक्र आपके गले के गड्ढे में मौजूद होता है। यह खास चक्र सांप के साथ बहुत मजबूती से जुड़ा होता है। विशुद्धि जहर को रोकता है, और सांप में जहर होता है। ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। विशुद्धि शब्द का अर्थ है फिल्टर या छलनी। अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। वह उसे अपने शरीर में प्रवेश नहीं करने देते। जहर आपके अंदर सिर्फ भोजन के द्वारा ही नहीं जाता। वह कई तरीकों से आपके अंदर घुस सकता है एक गलत विचार, एक गलत भावना, एक गलत कल्पना, एक गलत ऊर्जा या एक गलत आवेग आपके जीवन में जहर घोल सकता है। अगर आपका विशुद्धि चक्र सक्रिय है, तो वह सभी कुछ छान देता है। वह आपको इन सभी असरों से बचाता है। दूसरे शब्दों में, विशुद्धि के बहुत सक्रिय हो जाने पर इंसान अपने अंदर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उसके आस-पास जो भी होता है, वह उस पर असर नहीं डालता। वह अपने अंदर स्थिर हो जाता है। वह बहुत शक्तिशाली प्राणी बन जाता है।

Friday, February 20, 2015

Weight Loss (Try it)

आज के समय में काफी अधिक लोगों की समस्या है मोटापा। असंतुलित खान-पान और अनियमित दिनचर्या के चलते वजन बढ़ने की शिकायत आम बात हो गई है। यदि सही समय पर ध्यान न दिया जाए तो मोटापा किसी बड़ी बीमारी का रूप ले सकता है। अधिक वजन बढ़ने के बाद इससे मुक्ति पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

कई लोग मोटापे से मुक्ति पाने के लिए डॉक्टर्स के क्लिनिक के चक्कर लगाते हैं, कई प्रकार के देसी नुस्खें अपनाते हैं, लेकिन इतने प्रयासों के बाद भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस समस्या से निजात पाने का ज्योतिष में भी सटीक और कारगर उपाय बताया गया है। यह उपाय काफी प्राचीन समय से प्रचलित है और ऐसा माना जाता है कि इसे अपनाने पर चमत्कारी ढंग से मोटापा कम होने लग जाता है।

मोटापा दूर करती है रांगे की अंगूठी

जो लोग मोटापे से मुक्ति चाहते हैं, उन्हें अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) में रांगे की धातु से बनी अंगूठी पहनना चाहिए। अंगूठी पहनने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन रविवार है।

कहां मिलेगी रांगे की अंगूठी

रांगे की अंगूठी सोना-चांदी आदि धातु का व्यापार करने वाली दुकान पर आसानी से उपलब्ध हो सकती है।

ध्यान रखें ये बात

इस अंगूठी को धारण करने के लिए एक विधि बताई गई है। इसी विधि के अनुसार अंगूठी धारण करने पर सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। अन्यथा यह उपाय निष्फल हो सकता है।

किस प्रकार पहनें रांगे की अंगूठी

किसी भी रविवार के दिन थोड़ा सा काला धागा अपनी अनामिका उंगली पर जहां अंगुठी पहनी जाती है, वहां लपेट लें। इसके बाद रांगे की धातु से बनी अंगूठी को पहन लें। अंगूठी इस प्रकार पहनें कि वह काला धागा दिखाई न दें।

इन बातों की सावधानी रखें

यह प्रयोग काफी कारगर है। इस प्रकार रांगे की अंगूठी पहनने से मोटापे की समस्या से जल्दी ही मुक्ति मिलेगी। यदि किसी व्यक्ति का कोई चिकित्सकीय उपचार चल रहा है तो वह बंद नहीं किया जाना चाहिए। डॉक्टर्स से परामर्श किए बिना दवाइयों लेना बंद नहीं करना चाहिए। डॉक्टर्स द्वारा बताई गई टिप्स का भी नियमित रूप से पालन करें।

इस उपाय के साथ ही आप अपनी दिनचर्या संयमित करें और खान-पान का विशेष ध्यान रखें। अत्यधिक वसा वाला खाना ना खाएं। व्यायाम करें। इस प्रकार जल्द ही मोटापे से निजात मिलेगी। साथ ही, ध्यान रखें कि असमय सोना नहीं चाहिए।

मोटापे से बचने के लिए शाम के समय भोजन नहीं करना चाहिए। खाना खाने के लिए संध्या काल सही नहीं होता है। थोड़ा रुककर रात्रि के समय भोजन करना स्वास्थ्य के लिए विशेष लाभदायक होता है।

जो लोग शाम के समय भोजन करते हैं, उन्हें पेट संबंधी बीमारियां जैसे अपच, गैस, पेट में जलन, पेट दर्द, कब्ज आदि हो सकती हैं। यदि किसी व्यक्ति को शाम के समय ज्यादा ही भूख लगी हो तो वह हल्का नाश्ता कर सकता है, फलों का रस ले सकता है।

Thursday, February 19, 2015

The Secret Of Shakuni (Mahabharat)


महाभारत के सबसे प्रमुख पात्र होने के बावजूद शकुनि की कहानी को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। शायद कोई भी व्यक्ति इस बात को नकार नहीं सकता कि अगर महाभारत में शकुनि ना होता तो इसकी कहानी कुछ और ही होती। शकुनि ने अपनी चालों से कुरु वंशजों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया। वह शकुनि ही था जिसने कौरवों और पांडवों को इस कदर दुश्मन बना दिया कि दोनों ही एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए।

शकुनि को महाभारत का सबसे रहस्यमय पात्र कहा जाना गलत नहीं है। गांधारी के परिवार को समाप्त कर देने वाला शकुनि अपनी इकलौती बहन से बहुत प्रेम करता था लेकिन इसके बावजूद उसने ऐसे कृत्य किए, जिससे कुरुवंश को आघात पहुंचा।

क्या आप जानना नहीं चाहते कि आखिर शकुनि यह सब करने के लिए क्यों बाध्य हुआ? ऐसा क्या राज था शकुनि का जिसके चलते उसने अपनी बहन के पति को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ लिया था?

चौसर, शकुनि का प्रिय खेल था। वह पासे को जो अंक लाने के लिए कहता हैरानी की बात है वही अंक पासे पर दिखाई देता। इस चौसर के खेल से शकुनि ने द्रौपदी का चीरहरण करवाया, पांडवों से उनका राजपाठ छीनकर वनवास के लिए भेज दिया, भरी सभा में उनका असम्मान करवाया।

पासे की इस स्वामिभक्ति से तो हम कई बार परिचित हो चुके हैं लेकिन क्या आप जानते हैं शकुनि का अपने पासों से इतना गहरा संबंध और कुरुवंश को तबाह करने की मंशा एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़ी हैं, जिसकी नींव गांधारी के जन्म के साथ ही रख दी गई थी।

जन्म के समय जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई तो उसमें गांधारी के विवाह से जुड़ी एक परेशान कर देने वाली बात सामने आई।

जन्म के समय जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई तो उसमें गांधारी के विवाह से जुड़ी एक परेशान कर देने वाली बात सामने आई। गांधारी के विषय में यह बात सुनकर उसके पिता ने उसका विवाह एक बकरे के साथ करवाकर उस बकरे की बलि दे दी।

ऐसा कर गांधारी की कुंडली में पति की मौत के योग समाप्त हो गए और उसका परिवार उसके दूसरे विवाह और पति की आयु को लेकर निश्चिंत हो गया। जब गांधारी विवाह योग्य हुई तब उसके लिए धृतराष्ट्र का विवाह प्रस्ताव पहुंचाया गया। इस विवाह प्रस्ताव को गांधारी के माता-पिता ने तो स्वीकार कर लिया और जब गांधारी को पता चला कि धृतराष्ट्र दृष्टिहीन है तो अपने माता-पिता द्वारा दिए गए वचन की लाज रखने के लिए वह इस विवाह के लिए राजी हो गई।

लेकिन शकुनि को यह कदापि स्वीकार नहीं हुआ कि उसकी इकलौती बहन एक दृष्टिहीन की पत्नी बने। इस विवाह प्रस्ताव के लिए शकुनि के राजी ना होने के बावजूद गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।
लेकिन विवाह होने के बाद जब धृतराष्ट्र को गांधारी के विधवा होने जैसी बात पता चली तो वह आगबबूला हो उठा। क्रोध के आवेग में आकर धृतराष्ट्र ने गांधार नरेश पर आक्रमण किया और उस परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को कारागार में डलवा दिया। युद्ध के बंधकों की हत्या करना धर्म के खिलाफ है, इसलिए धृतराष्ट्र ने उन्हें भूख से तड़पा-तड़पाकर मारने का निश्चय किया।

धृतराष्ट्र ने अपने सैनिकों से कहा कि गांधार राज्य के बंधकों को पूरे दिन में मात्र एक मुट्ठी चावल वितरित किए जाएं। ऐसे हालातों में सभी बंधकों ने धृतराष्ट्र के परिवार से बदला लेने का निश्चय किया। उन्होंने सर्वसम्मति से सबसे छोटे पुत्र शकुनि को जीवित रखने का निश्चय किया ताकि वह धृतराष्ट्र के परिवार को तबाह कर सके। मुट्ठीभर चावल सिर्फ शकुनि को खाने के लिए दिए जाते, जिसकी वजह से धीरे-धीरे सभी बंधक अपना दम तोड़ने लगे।

शकुनि के सामने धीरे-धीरे कर उसका पूरा परिवार समाप्त हो गया और उसने यह ठान ली कि वह कुछ भी कर कुरुवंश को समाप्त कर देगा। अपने अंतिम क्षणों में शकुनि के पिता ने उससे कहा कि उसकी मौत के पश्चात उनकी अस्थियों की राख से वह एक पासे का निर्माण करे। यह पासा सिर्फ शकुनि के कहे अनुसार काम करेगा और इसकी सहायता से वह कुरुवंश का विनाश कर पाएगा।

ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की रूह वास कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था। इसके अलावा शकुनि और पासे के रहस्य से जुड़ी एक और कहानी चर्चित है जो पहले वाली कहानी से थोड़ी ज्यादा तार्किक नजर आती है। दरअसल शकुनि के पासे के भीतर एक जीवित भंवरा था जो हर बार शकुनि के पैरों की ओर आकर गिरता था। इसलिए जब भी पासा गिरता वह छ: अंक दर्शाता था। शकुनि भी इस बात से वाकिफ़ था इसलिए वह भी छ: अंक ही कहता था।

शकुनि का सौतेला भाई मटकुनि इस बात को जानता था कि पासे के भीतर भंवरा है। इसलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध से पूर्व उसने चौपड़ के खेल में शकुनि के विरुद्ध जाकर युधिष्ठिर की मदद की थी। मटकुनी ने एक ऐसा पासा लिया जिसके भीतर छिपकली थी। छिपकली, कीड़े-पतंगों को खा जाती है इसलिए शकुनि के पासे में बैठ भंवरा भी भयभीत होकर अपने पांव ऊपर की ओर रखकर बैठ गया। इसलिए उस खेल में शकुनि द्वारा छ: अंक कहने के बावजूद ‘एक’ ही अंक पर रह जाता था, जिसकी वजह से वह हार गया था।

उपरोक्त कहानी वेद व्यास की महाभारत में दर्ज नहीं है, आप इसे प्रक्षिप्तांश भी कह सकते हैं और गुप्त रहस्य भी मान सकते हैं।