Wednesday, March 18, 2015

'अश्वत्थामा' मंदिर में पूजा करते हैं


यहां है असीरगढ़ का किला
असीरगढ़ का किला बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर पर उत्तर दिशा में सतपुडा पहाड के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। किले के ऊपरी भाग में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर चारों और खाइयों से घिरा हुआ था !

किंवदंती के अनुसार इन्हीं खाइयों में से किसी एक खाई में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ, सीधे इस मंदिर में निकलता है। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा मंदिर में इसी रास्ते से आते हैं।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के नजदीक है 'असीरगढ़ किला' और इस किले के अंदर स्थित है 'गुप्तेश्वर महादेव मंदिर'।कहते हैं यहां गुप्तरूप से हर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अश्वत्थामा आते हैं। वह यहां शिवजी की पूजा करते हैं। अश्वत्थामा का उल्लेख महाभारत में मिलता है।
यहां किसी ने भी अश्वत्थामा को पूजा करते नहीं देखा, लेकिन सुबह गुप्तेश्वर मंदिर में शिवलिंग के समक्ष गुलाब के फूल और कुमकुम के मिलता है। मंदिर के पुजारियों का मानना है कि भगवान भोलेनाथ को गुलाब और कुमकुम अश्वत्थामा ही चढ़ाते हैं।

Sunday, March 15, 2015

Shiva's Nandi



नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है – आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। ध्यान का मतलब मुख्य रूप से यही है कि वह इंसान अपना कोई काम नहीं कर रहा है। वह बस वहां मौजूद है। जब आप बस मौजूद होते हैं, तो आप अस्तित्व के विशाल आयाम के प्रति जागरूक हो जाते हैं जो हमेशा सक्रिय होता है। आप जागरूक हो जाते हैं कि आप उसका एक हिस्सा हैं। आप अब भी उसका एक हिस्सा हैं मगर यह जागरूकता – कि ‘मैं उसका एक हिस्सा हूं’ – ध्यान में मग्न होना है। नंदी उसी का प्रतीक है। वह बस बैठा रहकर हर किसी को याद दिलाता है, ‘तुम्हें मेरी तरह बैठना चाहिए।’ 

Shiva's Third Eye.


शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा।

योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस तरीके से देख रहे हैं, जिस तरह उसका अनुभव कर रहे हैं, वह सच नहीं है!


इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो ज्यादा गहराई में देख सके। तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। हाल में ही एक वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है, जिसमें बताया गया है कि इंसानी आंख किस सीमा तक भौतिक अस्तित्व को देख सकती है। उनका कहना है कि इंसानी आंख भौतिक अस्तित्व का सिर्फ 0.00001 फीसदी देख सकते  है। इसलिए अगर आप दो भौतिक आंखों से देखते हैं, तो आप वही देख सकते हैं, जो सामने होता है। अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। हमारे देश और हमारी परंपरा में, ज्ञान का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातचीत सुनना या यहां-वहां से जानकारी इकट्ठा करना नहीं है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है। किसी कारण से महाशिवरात्रि के दिन प्रकृति उस संभावना को हमारे काफी करीब ले आती है। ऐसा करना हर दिन संभव है। इस खास दिन का इंतजार करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, मगर इस दिन प्रकृति उसे आपके लिए ज्यादा उपलब्ध बना देती है।

Saturday, March 14, 2015

Who Received the first instruction of Yoga?

योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की और हिमालय पर एक प्रचंड और भाव विभोर कर देने वाला नृत्य किया। वे कुछ देर परमानंद में पागलों की तरह नृत्य करते, फिर शांत होकर पूरी तरह से निश्चल (ध्यान्मगन) हो जाते। उनके इस अनोखे अनुभव के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। आखिरकार लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और वे इसे जानने को उत्सुक होकर धीरे-धीरे उनके पास पहुंचने लगे । लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि आदि योगी तो इन लोगों की मौजूदगी से पूरी तरह बेखबर थे। अपनी ही दुनिया में मस्त ! उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उनके इर्द गिर्द क्या हो रहा है! उन लोगो ने वहीं कुछ देर इंतजार किया और फिर थक हारकर वापस अपने घरों को लौट आए।

लेकिन उन लोगों में से सात लोग ऐसे थे, जो थोड़े हठी किस्म के थे। उन्होंने ठान लिया कि वे शिव से इस राज को जानकर ही रहेंगे। लेकिन शिव ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।

अंत में उन्होंने शिव से प्रार्थना की उन्हें इस रहस्य के बारे में बताएँ। शिव ने उनकी बात नहीं मानी और कहने लगे, ’मूर्ख हो तुम लोग! अगर तुम अपनी इस स्थिति में लाखों साल भी गुज़ार दोगे तो भी इस रहस्य को नहीं जान पाआगे। इसके लिए बहुत ज़्यादा तैयारी की आवश्यकता है। यह कोई मनोरंजन नहीं है।’ ये सात लोग भी कहां पीछे हटने वाले थे। शिव की बात को उन्होंने चुनौती की तरह लिया और तैयारी शुरू कर दी। दिन, सप्ताह, महीने, साल गुजरते गए और ये लोग तैयारियां करते रहे, लेकिन शिव थे कि उन्हें नजरअंदाज ही करते जा रहे थे। 84 साल की लंबी साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति के शरद संक्रांति में बदलने पर पहली पूर्णिमा का दिन आया, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण में चला गया। पूर्णिमा के इस दिन आदि योगी शिव ने इन सात तपस्वियों को देखा तो पाया कि साधना करते-करते वे इतने पक चुके हैं कि ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार थे। अब उन्हें और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।

शिव ने इन सातों को अगले 28 दिनों तक बेहद नजदीक से देखा और अगली पूर्णिमा पर इनका गुरु बनने का निर्णय लिया। इस तरह शिव ने स्वयं को आदि गुरु में रूपांतरित कर लिया। तभी से इस दिन को गुरु पूर्णिमा कहा जाने लगा। केदारनाथ से थोड़ा ऊपर जाने पर एक झील है, जिसे कांति सरोवर कहते हैं। इस झील के किनारे शिव दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गए और अपनी कृपा लोगों पर बरसानी शुरू कर दी। इस तरह योग का  प्रादुर्भाव हुआ या यों कहे की योग की पहली शिक्षा का शुभारंभ हुआ । इस प्रक्रिया के पूरे होने पर यही सात लोग  ब्रह्म ज्ञानी बन गए और हम आज उनको “सप्तऋषि” के नाम से जानते हैं। 


Friday, March 13, 2015

Mystery of Yoga.


‘योग’ शब्द दुनियाभर में अपनी पहचान तो बना चुका है। यह हर काल में बना रहा, सिर्फ इसलिए क्योंकि लंबे अर्से से इंसान की भलाई में जितना योगदान योग का रहा है, उतना किसी का नहीं।

आज लाखों लोग इसका अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? क्या कभी आप ने जानने की कोशिश की है कि ये कब आया कहाँ से आया किसने इसे शुरु किया? यह कहानी बहुत लंबी, बहुत पुरानी है आदियोगी यानी पहले योगी अर्थात योग के जनक के रूप में जाना जाता है। आप सोच रहे होंगे की क्या पहेली सुरु हो गयी लेकिन ये सच है की योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं, बल्कि योग के जनक के रूप में जाना जाता है। शिव ने ही योग का बीज मनुष्य के दिमाग में डाला।

शिव ने अपनी पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी। दूसरी शिक्षा जो योग की थी, उन्होंने केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले (सप्त ऋषियों ) सात शिष्यों को दी थी। यहीं दुनिया का पहला योग कार्यक्रम हुआ। शिव ने इन सातों ऋषियों को योग के अलग-अलग आयाम बताए और ये सभी आयाम योग के सात मूल स्वरूप हो गए। आज भी योग के ये सात विशिष्ट स्वरूप मौजूद हैं।

इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम इंसान तक पहुंचा सकें। इन सप्तऋषियों में से एक मध्य एशिया गए, दूसरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीकी भाग में गए, तीसरे ने दक्षिण अमेरिका और चौथे ने पूर्वी एशिया की राह पकड़ी। पांचवें ऋषि हिमालय के निचले इलाकों में उतर आए। छठे ऋषि वहीं आदि योगी के साथ रुक गए और सातवें ने दक्षिण दिशा में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। दक्षिणी प्रायद्वीप की यात्रा करने वाले यही ऋषि हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। जानते हैं उनका नाम क्या था? उनका नाम था – अगस्त्य मुनि।

अगर आप दक्षिण में कहीं भी जाएंगे तो आपको वहाँ के कई गाँवों में तमाम तरह आपको आज भी दक्षिण के कुछ गांवों की पौराणिक कथाएं सुनने को मिलेंगी। ’अगस्त्य मुनि’ ने इसी गुफा में ध्यान किया था’, अगस्त्य मुनि ने यहां एक मंदिर बनवाया’, ‘इस पेड़ को अगस्त्य मुनि ने ही लगवाया था’, ऐसी न जाने कितनी दंत कथाएं वहां प्रचलित हैं। अगर आप उनके द्वारा किए गए कामों को देखें और यह जानें कि पैदल चलकर उन्होंने कितनी दूरी तय की तो आपको इस बात का सहज ही अंदाजा हो जाएगा कि वह कितने बरस जिए होंगे। कहा जाता है कि इतना काम करने में उन्हें चार हजार पांच सों साल लगे थे।

अगस्त्य मुनि ने आध्यात्मिक प्रक्रिया को किसी शिक्षा या परंपरा के जैसे नहीं बनाया क्यूंकि वो जानते थे की लोग उन बातों इतनी जल्दी नहीं सिख पायेंगे और योग की सारी  शिक्षा बताने में पता नहीं कितने जन्म इन लोगों को लेने होंगे!, इसलिए उन्होंने एक सरल रास्ता निकाला और योग को जीवन जीने के तौर पर, व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बना दिया। उन्होंने सैकड़ों की तादाद में ऐसे योगी पैदा किए, जो अपने आप में ऊर्जा के भंडार थे। कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने कोई ऐसा शख्स नहीं छोड़ा जिस तक इस पवित्र योगिक ज्ञान और तकनीक को न पहुंचाया हो। इसकी झलक इस बात से मिलती है कि उस इलाके में आज भी तमाम ऐसे परिवार हैं, जो जाने अनजाने योग से जुड़ी चीजों का पालन कर रहे हैं। इन लोगों के रहन-सहन, जिस तरह वे बैठते हैं, खाते हैं, वे जो भी करते हैं, उसमें अगस्त्य के कामों की झलक दिखती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उन्होंने घर-घर में योग की प्रतिष्ठा की।

आज भी आप लोग हर रोज अपने घर के बड़े लोगों से सुनते होंगे की इतने बजे उठाना चाहिये सुबह जल्दी उठ कर साफ़ सफाई करो स्नान करने के बाद रसोईघर  में जाओ दो फिर  पहले सूरज को पानी  दो फिर तुलसी के पौधे में जल अर्पण करो ज्योत लगाओ आरती करो, मंदिर जाओ , इस दिन इस भगवान् की पूजा करो सुबह हर रोज ताजा गेहूं पीसो घेर में चूल्हे की पहली रोटी गौ माता की आदि आदि......इन सब बातों के पीछे क्या सीक्रेट (योग) था कोई नहीं जानता और जो जानता है और इसका पालन करता है वो सुखपूर्वक अपना दिन गुजारता है और मुक्ति पा कर  शिव के चरणों में जाता है!

Thursday, March 12, 2015

Yogmudra for HEART ATTACK, ANGINA PECTORIS, PAIN KILLER, SORBITATE, ANGINA PECTORIS, NERVOUSNESS, MIGRAINE.


                                                 मृत संजीवनी या अपान वायु मुद्रा 

विधि :-- तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की गद्दी में लगाएं (वायु मुद्रा) तथा मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं (अपान मुद्रा)| सबसे छोटी अंगुली सीधी रखें |


अभिप्राय :-- इस मुद्रा में दो मुद्राएं एक साथ लगाई जाती हैं – वायु मुद्रा और अपान मुद्रा | इसीलिये इसका यौगिक नाम है – अपान वायु मुद्रा | यह हृदयाघात (HEARTATTACK) में अत्यंत लाभकारी होने के कारण इसे मृतसंजीवनी मुद्रा की संज्ञा भी दी गई है | यदि अपान वायु मुद्रा ही कहें तो इस मुद्रा की विधि स्मरण करना आसान हो जाता है – वायु मुद्रा , अपान मुद्रा |

वायु मुद्रा पीड़ानाशक है – स्वाभाविक PAIN KILLER , शरीर में कहीं भी पीड़ा हो , गैस की समस्या हो , वायु मुद्रा उसे ठीक करती है | अपान मुद्रा पाचन शक्ति एवं हृदय को मजबूत करती है | ANGINA PECTORIS हृदय की पीड़ा के लिए तो यह शक्तिशाली मुद्रा है |

लाभ :-- (1) अपान वायु मुद्रा का हृदय पर विशेष प्रभाव पड़ता है | हृदयाघात (HEARTATTACK) रोकने एवं हृदयाघात हो जाने पर भी यह मुद्रा तत्काल लाभ पहुंचाती है | यह मुद्रा सोरबीटेट (SORBITATE) की गोली का कार्य करती है – दो तीन सैकेंड के भीतर ही इस मुद्रा का लाभ आरम्भ हो जाता है , रोगी को चमत्कारिक राहत मिलती है | बढ़े हुई वायु के कारण ही हृदय की रक्तवाहिनियां शुष्क होने लगती है – उनमें सिकुड़न पैदा होने लगती हैं | वायु मुद्रा से हृदय की नालिकाओं का सिकुड़न दूर होता है |

(2) हृदय शूल (ANGINA PECTORIS) दूर होता है |

(3) हृदय के सभी रोग दूर होते हैं |

(4) उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप दोनों ही ठीक होते हैं |

(5) दिल की धड़कन बढ़ जाए या धीमी हो जाए – दोनों ही स्थितियों में दिल की धड़कन सामान्य करती है |

(6) घबराहट (NERVOUSNESS) हो , स्नायु तन्त्र के सभी रोगों में लाभकारी |

(7) फेफड़ों को स्वस्थ बनाती है – अस्थमा में लाभकारी है |

(8) वातरोगों में तुरन्त लाभ – पेट की वायु , गैस , पेट दर्द गुदा रोग , एसिडिटी , गैस से हृदय की जलन सभी ठीक होते हैं |

(9) सिर दर्द , आधे सिर का दर्द (MIGRAINE) , सिर दर्द वास्तव में पेट की खराबी से ही होता है | सिर दर्द में इस मुद्रा का चमत्कारी लाभ होता है | अनिद्रा अथवा अधिक परिश्रम से होने वाले रोग भी ठीक होते हैं |

(10) घुटने के दर्द में आराम – सीढियां चढ़ने से पहले 5 से 7 मिनट अपान वायु मुद्रा लगाने से सीढियां चढ़ते हुए न सांस फूलेगा न ही घुटनों में दर्द होगा |

(11) हिचकी आनी बन्द हो जाती है | दांत दर्द में भी लाभदायक |

(12) आंखों का अकारण झपकना भी रुकता है | हमारी संस्कृति में स्त्रियों की दायीं आंख व पुरुषों की बायीं आंख का फड़कना अशुभ माना जाता है | अपानवायु मुद्रा से इसमें लाभ मिलता है |

(13) वात – पित्त – कफ तीनों दोषों को दूर करती है | रक्तसंचार प्रणाली , पाचन प्रणाली सभी को ठीक करती है |

(14) शरीर एवं मन के सभी नकारात्मक दबाव दूर करती है | इस मुद्रा के लगातार अभ्यास से सभी प्रकार के हृदय रोग दूर होते हैं परन्तु मुद्रा के साथ अपने भोजन , दिनचर्या , व्यायाम आदि पर ध्यान देना भी आवश्यक है | हृदय रोग में यह मुद्रा रामवाण है | एक प्रभावशाली इंजेक्शन से भी अधिक लाभदायक है |


सावधानी :-- * इस मुद्रा को दिन में दो बार 15 – 15 मिनट तक ही लगाएं |

• तर्जनी (Index finger) को अंगुष्ठ के मूल में लगाकर मध्यमा (Middle finger) तथा अनामिका (Ring finger) को अंगुष्ठ के अग्र भाग से मिलाकर यह मुद्रा बनती है | यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण और चमत्कारी मुद्रा है | जितनी जल्दी इस मुद्रा का शरीर पर प्रभाव होता है , शायद ही किसी दूसरी मुद्रा का होता होगा |

Monday, March 9, 2015

Meaning of Low Density lipoprotive, cholesterol, Very Low Density lipoprotive, BP.


Please Read Carefully

ये जानना बहुत जरुरी है ...
हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद। 
क्या कारण है |

हमने दाल खाई,
हमने सब्जी खाई, 
हमने रोटी खाई,
हमने दही खायी 
लस्सी पी ,
दूध,दही छाझ लस्सी फल आदि|,

ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया 

ये सब कुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है | पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय" उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"| उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है " epigastrium "| ये एक थेली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान हैं 


इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है | हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है| आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"। |ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी | यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|  ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है | अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया| और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है | अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी| आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|

अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,
एक क्रिया है जिसको हम कहते हे "Digestion"  और दूसरी है "fermentation"
फर्मेंटेशन का मतलब है सडना 
और डायजेशन का मतलब हे पचना|

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|

जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा| ये तभी होगा जब खाना पचेगा| यह सब हमें चाहिए| ये तो हुई खाना पचने की बात अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?

खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid ) |कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है, मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो| और एक दूसरा उदाहरण खाना जब सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे LDL (Low Density lipoprotive) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )| जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP ) हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ? तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है | आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ? तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |इससे भी ज्यादा खतरनाक एक  विष हे वो है VLDL (Very Low Density lipoprotive)| ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है। अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides| जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है | तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये विष हे और ऐसे विष 103 है | ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है , कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है | कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है | क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता| खाना पचने पर जो बनता है वो है मांस,मज्जा,रक्त ,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल,LDL-VLDL| 

और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !

पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है *जिसे आप heart attack कहते हैं ! तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है

* महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है | आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे। खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!

"भोजनान्ते विषं वारी"
(मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है )🔸

* इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!
अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???
तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !
अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??
बात ऐसी है ! जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं ! पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है ! उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है ! (बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है ) पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है ! तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं । तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !! जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले) उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने लगता है उनको  घंटे बाद पानी पीना चाहिए !

अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???
तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ????
बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है ! और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है ! तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है ! तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !
इसका जरूर पालन करे ! अधिक अधिक लोगो को बताएं



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Saturday, March 7, 2015

How To Protect Your Home from Negative Energy?


व्रिका विज बता रही हैं कि कैसे आप नकारात्मक ऊर्जा से अपने घर को बचा सकते हैं।
कई बार, आप किसी कमरे में जाते हैं और एकदम से चौंक जाते हैं। कुछ तो होता है और कई बार जिसे हम पहचान भी नहीं सकते, वह सही नहीं होता। एक प्रकार का असंतुलन होता है जो आपको असहज बना देता है। इस प्रकार के माहौल में, शायद आप कोई उच्चता महसूस करें, लेकिन फ़ौरन ही कमरे से बाहर जाना चाहते हैं, क्योंकि आप पूरी तरह निचुड़ा हुआ महसूस करते हैं। कुछ लोग जो हवा में सूक्ष्म ऊर्जा के प्रति भी बहुत संवेदनशील होते हैं, उस जगह रुकना पसंद नहीं करते, इस डर से कि शायद इससे उनके आभामंडल में ऊर्जा दूषित हो सकती है।

घर और अन्य स्थान अक्सर अपने पिछले रहने वालों की ऊर्जा ग्रहण कर लेते हैं; तो ध्यान दीजिये, क्योंकि ऊर्जा में नकारात्मक, सकारात्मक या कभी-कभी निष्प्रभाव तरंगें हो सकती हैं। यह अच्छा होगा कि अपनी और अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए घर में ऊर्जा की शुद्धि का नियमित अभ्यास शुरू किया जाए। ज्योत्सना सिंह, जो एक रेकी चिकित्सक हैं, अपने घर पर एक विशेष रूप से डिज़ाइन किए हुए और शक्तियुक्त दीपक में रोज़ाना कपूर जलाती हैं। वे कहती हैं, “मैं इसे बीचों-बीच जलाती हूँ”, “ऐसी जगह पर जहां से इसका सुगंधित धुआं, घर के हर कोने तक पहुँच सके। कभी-कभी, जिस प्याले में हम कपूर लाते हैं उसके बाहर कालिख या नकारात्मक ऊर्जा का भारी जमाव हो जाता है। हमारे गुरु कहते हैं कि यह नकारात्मक ऊर्जा है जो अब जल के दूर हो चुकी है।

अपनी उदासियों को पीछे छोड़िये

एक शुरुआत के लिए, ऐसी चीज़ों का त्याग करिए जिनकी आप को ज़रूरत न हो और यदि आपको नई चीज़ों कीज़रुरत हो तो उनके लिए जगह बनाइए। यह उन परिवर्तन की इच्छा और प्रकटीकरण हेतु प्रतीकात्मक हो सकता है, जो आप अपने जीवन में चाहते हैं। यह संभव है कि आपके चारों ओर ऐसी नकारात्मक ऊर्जाएँ फ़ैली हुई हो, जो इस तरह से आपके घर को यिन या नकारात्मक बना रही हो कि आपका मन भी प्रभावित हो रहा हो। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि नकारात्मक ऊर्जा इकट्ठी हो कर बढ़ जाती है, अपनी तरह के प्रभाव को और बढ़ाते हुए और यह आपके स्वास्थ्य, करियर और वित्त पर संकट ला सकती है, बिना किसी स्पष्ट कारण के भी। घर को अच्छी तरह से साफ़ करें और यह करते हुए, अपना ध्यान नकारात्मक ऊर्जा की शुद्धता पर केंद्रित रखने के लिए।

जब आप अवांछित नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर रहे हो, तो इच्छा-शक्ति बहुत ज़रूरी है। एक उद्देश्यपूर्ण आशय के बिना, कोई भी तकनीक सफल नहीं हो सकती।

प्रकाश और ध्वनि, दो बहुत ही उपयोगी यैंग उपचार हैं जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर देते हैं। खनकती विंड चाइम्स और रौशन फ़ानूस भी ऊर्जा को शुद्ध करते हैं। अन्य तरीक़े भी हैं, लेकिन कुछ लोगों के लिए, किसी विशेषज्ञ से परामर्श कर के सही तकनीक सीखना सबसे अच्छा होता है। सामने के दरवाज़े से, दक्षिणावर्त (क्लॉकवाइज़) दिशा में अन्दर आना, घंटी बजाते हुए प्रत्येक कमरे का चक्कर लगाना, भी प्रभावशाली होता है। इरादे के साथ ज़ोरदार, उद्देश्यपूर्ण ताली बजाना कमरे में जमा पड़ी गंदी ऊर्जा को छिन्न-भिन्न और बाहर कर सकता है। यह महीने में दो ​​या तीन बार किया जा सकता है।

ओम् के साथ हवा कीजिए साफ़
एक कमरे में 15 मिनट तक 'ओम्' या 'आमीन' जाप, बाहरी और अंदर, दोनों तरह से जादू का काम करता है। नमक से दीवारों को पोंछना और कमरे के कोनों में इसका छिड़काव, नकारात्मकताओं से छुटकारा पाने का एक प्रभावी तरीक़ा है। हर कमरे में नमक के पानी का एक कटोरा भी प्रभावी होता है क्योंकि नमक नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और उसे छिन्न-भिन्न कर देता है, लेकिन नमक को झाड़ना सुनिश्चित करें और इस नमक के पानी को रोज़ शौचालय के पॉट में फेंक दें, क्योंकि यह दूषित होता है। "मेरे प्राणिक उपचारक मुझे हमेशा एक नमक के पानी के कटोरे में नकारात्मक ऊर्जा को झाड़ के फेंक देने की सलाह देते हैं", रीना परेरा ने बताया, जो बुनियादी प्राणिक उपचार तकनीक में प्रशिक्षित हैं। वे कहती हैं, "हम अपने हाथों में स्पिरिट भी छिड़कते हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा हम पर हमला न करे।”

सामने के दरवाज़े से शुरू करते हुए दक्षिणावर्त (क्लॉकवाइज़) दिशा में, अपने घर की परिधि के आसपास चावल छिड़क कर देखिए। चावल ऊर्जा को बाहर की ओर और घर के भीतरी हिस्से से दूर खींच लेता है।
सुगंधित शांति

धूप-बत्ती या जड़ी बूटियों जैसे कि लैवेंडर से निकलता धुआं अच्छा होता है। नीलगिरी चिकित्सा के लिए, पुदीना समृद्धि के लिए, दोनों एक उपचार भरी खुशबू छोड़ते हैं। उनके जलने से जो प्राकृतिक सुगंधित सत्व निकलते हैं, वे तरंग भरी आवृत्तियों को पलट सकते हैं और किसी जगह पर मौजूद ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हुए शुद्ध कर सकते हैं

"आप अपने घर या कार्यस्थल की कल्पना बहुत छोटे रूप, कुल क्षेत्रफल लगभग 1 फुट, में अपने सामने कर सकते हैं। अपनी कल्पनाओं के दृश्य को जितना हो सके उतना स्पष्ट करें। फिर कमरों में विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा प्रवाहित करें, यह इरादा करते हुए कि ऊर्जा आपकी गदेलियों से फूट रही है, और आपका मुकुट चक्र से निकलते हुए नीचे की ओर पहुँच रही है। यह उस जगह को शुद्ध कर देता है और घर के सभी कमरों में किया जा सकता है", कहते हैं जसमीत सिंह, जो दक्षिण दिल्ली में एक प्राणिक उपचारक हैं।

अपने घर को सूरज की रोशनी के सैलाब से भरने दीजिए और नए प्राण या ची बनाने के लिए कम से कम एक
घंटे तक ताज़ी हवा आने के लिए खिड़कियां और दरवाज़े खोल दें। अपने घर में, अपना प्यारा, सुखदायक संगीत
बजाना, भी अच्छा ची बनाने के लिए एक और दमदार उपचार है।

Wednesday, March 4, 2015

Always Think Be Postive.


हमारे मस्तिष्क में अच्छा, प्यार और रचना करने की योग्यता है, विज्ञान बल्गेरियाई अकादमी के वैज्ञानिक हर्ष कब्राल्फ कहते हैं। वह मानते हैं कि मानव जाति अगले 10-15 वर्षों में एलियंस से सीधे संपर्क करने जा रही है, किसी रेडिया तरंगों के माध्यम से नहीं, बल्कि "विचारों की शक्ति से।" हमसे से कई के लिए, विचार कार्य कर रहे मस्तिष्क की दैनिक कृतियां, खुले नल से बहते पानी से ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि, सरल और संक्षेप दृष्टिकोण में लेते हुए दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डब्ल्यू हार्ट कहते हैं "मन के विश्लेषण की कलाकृतियां हैं"

हम वास्तविक ऊर्जा की सराहना में असफल रहते हैं जो मस्तिष्क की तरंगों को संगठित करती है। वास्तव में सोचने की शक्ति दर्शनशास्त्र के क्षेत्र तक सीमित नहीं है। एक आस्ट्रियन स्वास्थ्य देखभाल कंपनी ने विचार संचालित कृत्रिम बाँह का आविष्कार किया है जो पहनने वाले के मस्तिष्क के आवेगों पर कार्य करती है। जरागोजा विश्वविद्यालय, स्पेन के वैज्ञानिकों ने एक व्हीलचेयर का अनावरण किया है जिसे विचार शक्ति द्वारा चलाया जा सकता है - उपयोगकर्ता को केवल जहां वह जाना चाहता है, उसी ओर के भाग पर ध्यान लगाने की आवश्यकता है और स्कलकैप में इलैक्ट्रोड लक्ष्य पर कार्य करने के लिए उपयोगकर्ता के मस्तिष्क की गतिविधि का पता लगाता है।

विश्व के सबसे बड़े-बड़े खिलौना निर्माता एक आविष्कारक खेल का निर्माण पहले ही कर चुके हैं जहां मस्तिष्क-स्कैनिंग हैडसेट पहने खिलाड़ी विचारों की शक्ति का प्रयोग करते हुए एक अवरोधक मार्ग के माध्यम से गेंद का मार्गदर्शन कर सकते हैं। साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के संकेतों को पकड़ने के लिए और आदेशों में बदलने के लिए मस्तिष्क-कम्प्यूटर इंटरफेसिंग का प्रयोग किया है जो विभिन्न कार्यों के बारे में केवल सोच द्वारा उपकरणों और आभासी वास्तविक वातावरणों को नियंत्रित करने के लिए मानव को अनुमति देता है।

ये विकास भगवद्-गीता के दावे को मजबूत वैज्ञानिक आयाम देते हैं, "आप क्या सोचते हैं, अतः विचार कार्य है, किया जा रहा है और हो जाता है, जो सोचता है, वह बनता है।" यह सोचने की शक्ति थी कि कृष्ण ने अर्जुन में आह्वान किया जिससे उन्हें अपने दुख से उबरने की शक्ति मिली। यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन ने पुष्टि की कि मस्तिष्क तरंगों का सीधा प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है। उदाहरण के लिए उन्होंने पाया कि लोगों एक निश्चित आवृत्ति और स्थान की मस्तिष्कतरंगों के वर्धन द्वारा धीमी गति में चलने के लिए बनाया जा सकता है।

दर्शनशास्त्र के वास्तविक आंतरिक रहस्य में सी. अलेक्सजेंडर ने लिखते हैं, "जब सोच इच्छा के प्रयोग द्वारा मध्य बिंदु तक लाई जाती है, यह हजार गुना बल प्राप्त कर सामान्य परिस्थितियों में अधिग्रहण करती है। "मानसिक शक्ति के स्वामियों ने इन शक्तिशाली ऊर्जाओं के सदियों से अध्ययन के दौरान इस सत्य को सीखा है और वे इसे अपने अभ्यास व अनुदेश का पहला महान रहस्य मानते हैं।" यह हमारे स्वास्थ्य, जीवनशैली, व्यवसाय या संबंधों का बनाता है, हम क्या हैं, हम बनने के लिए चुनते हैं। स्वामी चिन्मयानंद के अनुसार, "गतिविधियां सोचने की शक्ति द्वारा सामथ्र्य पाती हैं जो उन्हें चलाती हैं। जैसे जैम्स ऐलन ने एज ए मैन थिनकैथ में लिखा है मानव मस्तिष्क चरित्र के आंतरिक वस्त्र और परिस्थिति के बाहरी वस्त्र दोनों का बुनकर है।"

हमारे जीवन के नकारात्मक पहलू के बारे में अधिक सोचने पर, हम हमारे क्रोध, निराशा या तनाव जैसी बहुत चीजों के परिवर्धन को समाप्त करते हैं। एफर्मेशन पावर में लुईस एल. हे लिखते हैं, "हमारे विचार हमारी भावनाओं, विश्वासों और अनुभवों को बनाते हैं। यदि हमारी सोच नकारात्मक है, हम नकारात्मकता के समुद्र में डूब सकते हैं, यदि यह सकारात्मक है, हम जीवन के सागर में तैर सकते हैं।" यह अज्ञान विश्वास में जीने वालों के नहीं है कि सकारात्मक सोच हमारे रास्ते की सभी बाधाओं को अपने आप हमें बचाएगी। इसके विपरीत, यह सकारात्मक सोच रखने वाले जीवन के बारे में है क्योंकि ऐसे मस्तिष्क बेहतर सोचता है।

सभी विपदाओं के लिए सकारात्मक सोच अकेले दुख हारण औषधि नहीं बन सकती, क्योंकि स्वय-सहायता करने में हमें विश्वास होगा, लेकिन यह निश्चित ही सकारात्मक भावनाओं को ठीक कर सकता है जो हमें स्पष्ट सोचने में मदद कर सकता है और खुशियां के अधिक पास ले जा सकता है। विचार हमें अच्छा करने, हानि, रचना, नष्ट, प्रेम और घृणा में समर्थ करते हैं। सत्ता पाने और शोषण के लिए हम शक्ति का प्रयोग करते हैं। यदि एलियंस के साथ संचार करने में यह हमारी मदद कर सकता, तो हमारे अपने स्वार्थ के संचार और कार्यों के गौरव के मार्गदर्शन के वर्णन के लिए इसका प्रयोग क्यों नहीं कर सकते।