Thursday, February 19, 2015

The Secret Of Shakuni (Mahabharat)


महाभारत के सबसे प्रमुख पात्र होने के बावजूद शकुनि की कहानी को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। शायद कोई भी व्यक्ति इस बात को नकार नहीं सकता कि अगर महाभारत में शकुनि ना होता तो इसकी कहानी कुछ और ही होती। शकुनि ने अपनी चालों से कुरु वंशजों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया। वह शकुनि ही था जिसने कौरवों और पांडवों को इस कदर दुश्मन बना दिया कि दोनों ही एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए।

शकुनि को महाभारत का सबसे रहस्यमय पात्र कहा जाना गलत नहीं है। गांधारी के परिवार को समाप्त कर देने वाला शकुनि अपनी इकलौती बहन से बहुत प्रेम करता था लेकिन इसके बावजूद उसने ऐसे कृत्य किए, जिससे कुरुवंश को आघात पहुंचा।

क्या आप जानना नहीं चाहते कि आखिर शकुनि यह सब करने के लिए क्यों बाध्य हुआ? ऐसा क्या राज था शकुनि का जिसके चलते उसने अपनी बहन के पति को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ लिया था?

चौसर, शकुनि का प्रिय खेल था। वह पासे को जो अंक लाने के लिए कहता हैरानी की बात है वही अंक पासे पर दिखाई देता। इस चौसर के खेल से शकुनि ने द्रौपदी का चीरहरण करवाया, पांडवों से उनका राजपाठ छीनकर वनवास के लिए भेज दिया, भरी सभा में उनका असम्मान करवाया।

पासे की इस स्वामिभक्ति से तो हम कई बार परिचित हो चुके हैं लेकिन क्या आप जानते हैं शकुनि का अपने पासों से इतना गहरा संबंध और कुरुवंश को तबाह करने की मंशा एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़ी हैं, जिसकी नींव गांधारी के जन्म के साथ ही रख दी गई थी।

जन्म के समय जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई तो उसमें गांधारी के विवाह से जुड़ी एक परेशान कर देने वाली बात सामने आई।

जन्म के समय जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई तो उसमें गांधारी के विवाह से जुड़ी एक परेशान कर देने वाली बात सामने आई। गांधारी के विषय में यह बात सुनकर उसके पिता ने उसका विवाह एक बकरे के साथ करवाकर उस बकरे की बलि दे दी।

ऐसा कर गांधारी की कुंडली में पति की मौत के योग समाप्त हो गए और उसका परिवार उसके दूसरे विवाह और पति की आयु को लेकर निश्चिंत हो गया। जब गांधारी विवाह योग्य हुई तब उसके लिए धृतराष्ट्र का विवाह प्रस्ताव पहुंचाया गया। इस विवाह प्रस्ताव को गांधारी के माता-पिता ने तो स्वीकार कर लिया और जब गांधारी को पता चला कि धृतराष्ट्र दृष्टिहीन है तो अपने माता-पिता द्वारा दिए गए वचन की लाज रखने के लिए वह इस विवाह के लिए राजी हो गई।

लेकिन शकुनि को यह कदापि स्वीकार नहीं हुआ कि उसकी इकलौती बहन एक दृष्टिहीन की पत्नी बने। इस विवाह प्रस्ताव के लिए शकुनि के राजी ना होने के बावजूद गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।
लेकिन विवाह होने के बाद जब धृतराष्ट्र को गांधारी के विधवा होने जैसी बात पता चली तो वह आगबबूला हो उठा। क्रोध के आवेग में आकर धृतराष्ट्र ने गांधार नरेश पर आक्रमण किया और उस परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को कारागार में डलवा दिया। युद्ध के बंधकों की हत्या करना धर्म के खिलाफ है, इसलिए धृतराष्ट्र ने उन्हें भूख से तड़पा-तड़पाकर मारने का निश्चय किया।

धृतराष्ट्र ने अपने सैनिकों से कहा कि गांधार राज्य के बंधकों को पूरे दिन में मात्र एक मुट्ठी चावल वितरित किए जाएं। ऐसे हालातों में सभी बंधकों ने धृतराष्ट्र के परिवार से बदला लेने का निश्चय किया। उन्होंने सर्वसम्मति से सबसे छोटे पुत्र शकुनि को जीवित रखने का निश्चय किया ताकि वह धृतराष्ट्र के परिवार को तबाह कर सके। मुट्ठीभर चावल सिर्फ शकुनि को खाने के लिए दिए जाते, जिसकी वजह से धीरे-धीरे सभी बंधक अपना दम तोड़ने लगे।

शकुनि के सामने धीरे-धीरे कर उसका पूरा परिवार समाप्त हो गया और उसने यह ठान ली कि वह कुछ भी कर कुरुवंश को समाप्त कर देगा। अपने अंतिम क्षणों में शकुनि के पिता ने उससे कहा कि उसकी मौत के पश्चात उनकी अस्थियों की राख से वह एक पासे का निर्माण करे। यह पासा सिर्फ शकुनि के कहे अनुसार काम करेगा और इसकी सहायता से वह कुरुवंश का विनाश कर पाएगा।

ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की रूह वास कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था। इसके अलावा शकुनि और पासे के रहस्य से जुड़ी एक और कहानी चर्चित है जो पहले वाली कहानी से थोड़ी ज्यादा तार्किक नजर आती है। दरअसल शकुनि के पासे के भीतर एक जीवित भंवरा था जो हर बार शकुनि के पैरों की ओर आकर गिरता था। इसलिए जब भी पासा गिरता वह छ: अंक दर्शाता था। शकुनि भी इस बात से वाकिफ़ था इसलिए वह भी छ: अंक ही कहता था।

शकुनि का सौतेला भाई मटकुनि इस बात को जानता था कि पासे के भीतर भंवरा है। इसलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध से पूर्व उसने चौपड़ के खेल में शकुनि के विरुद्ध जाकर युधिष्ठिर की मदद की थी। मटकुनी ने एक ऐसा पासा लिया जिसके भीतर छिपकली थी। छिपकली, कीड़े-पतंगों को खा जाती है इसलिए शकुनि के पासे में बैठ भंवरा भी भयभीत होकर अपने पांव ऊपर की ओर रखकर बैठ गया। इसलिए उस खेल में शकुनि द्वारा छ: अंक कहने के बावजूद ‘एक’ ही अंक पर रह जाता था, जिसकी वजह से वह हार गया था।

उपरोक्त कहानी वेद व्यास की महाभारत में दर्ज नहीं है, आप इसे प्रक्षिप्तांश भी कह सकते हैं और गुप्त रहस्य भी मान सकते हैं।

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